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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [५०९ गोयमा! नेरइएसु उववजंति जाव देवेसु उववजंति। [६७२-१ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? __ [६७२-१ उ.] गौतम! (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। [२] जदि रइएसु उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु उववजंति ? गोगमा! रयणप्पभापुढविनेरइएसु वि उववजंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु वि उववजंति। [६७२-२. प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन होते हैं अथवा यावत् अध:सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में (से किन्हीं में) उत्पन्न होते हैं ? [६७२-२ उ.] गौतम! (वे) रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् अध:सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं । [३] जइ तिरिक्खजोणिएसु उववजंति किं एगिदिएसु जाव पंचिंदिएसु ? गोयमा! एगिदिएसु वि उववज्जति जाव पंचेंदिएसु वि उववजंति। [६७२-३ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? [६७२-३ उ.] गौतम! (वे) एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। [४] एवं जहा एतेसिं चेव उववाओ उव्वट्टणा वि तहेव भाणितव्वा। नवरं असंखेज्जवासाउएसु वि एते उववजंति । [६७२-४] यों जैसा इनका उपपात कहा है, वैसी ही इनकी उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि वे असंख्यातवर्षों की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं। [५] जति मणुस्सेसु उववज्जंति किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु उववजंति गब्भवक्कंतियमणूसेसु उववजंति ? गोयमा! दोसु वि उववज्जति । [६७२-५ प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूछिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? [६७२-५ उ.] गौतम! (वे) दोनों में ही उत्पन्न होते हैं। [६] एवं जहा उववाओ तहेव उव्वट्टणा वि भाणितव्वा। नवरं अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जंति त्ति भाणितव्वं। [६७२-६] इसी प्रकार जैसा इनका उपपात कहा, वैसी ही इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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