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छठा व्युत्क्रान्तिपद ]
हैं, (किन्तु ) अपर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते ।
[ ६ ] जति पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणूसेहिंतो उववज्जति किं सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखज्जवासाउयकम्मभूमगेहिंतो उववज्र्ज्जति ? मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तसंखेज्जवास हिंतो उववज्जंति ? सम्मामिच्छाद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखे ज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कं तियमणुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगेहिंतो वि उववज्जंति, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगेहिंतो उववज्र्ज्जति ।
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[६६२-६ प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (या) मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (अथवा ) सम्यग्मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
[६६२-६ उ.] गौतम! सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से भी (d) उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं; किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते ।
[ ७ ] जति सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहिंतो उववज्र्ज्जनि किंफसंजतसम्मद्दिट्ठीहिंतो ? असंजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तएहिंतो ? संजयासंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! तीहिंतो वि उववज्जति ।
[६६२-७ प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक- संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुश्यों से उत्पन्न होते हैं या असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
[६६२-७ उ.] गौतम! (वे आनत देव) (उपर्युक्त) तीनों से ही (संयतसम्यग्दृष्टियों से, असंयतसम्यग्दृष्टियों से तथा संयतासंयतसम्यग्दृष्टियों से) उत्पन्न होते हैं ।
६६३. एवं जाव अच्चुओ कप्पो ।
[६६३] अच्युतकल्प के देवों तक ( के उपपात के विषय में) इसी प्रकार कहना चाहिए । ६६४. एवं गेवेज्जगदेवा वि । णवरं असंजत-संजतासंजतेहिंतो एते पडिसेहेयव्वा ।
[ ६६४] इसी प्रकार (नौ) ग्रैवेयकदेवों के उपपात के विषय में भी समझना चाहिए। विशेषता यह