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छठा व्युत्क्रान्तिपद ]
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[६५८ उ.] गौतम! इसी प्रकार (ज्योतिष्क देवों का उपपात भी पूर्ववत् असुरकुमारों के उपपात के समान ही) समझना चाहिए। विशेषता यह है कि ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्मूछिम असंख्यातवर्षायुष्कखेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों को तथा अन्तर्वीपज मनुष्यों को छोड़कर कहनी चाहिए। अर्थात् इनसे निकल कर कोई सीधा ज्योतिष्क देव नहीं होता।
६५९. वेमाणिया णं भंते! कतोहिंतो उववजंति ? किं णेरइएहितो, तिरिक्खजोणिएहितो, मणुस्सेहितो, देवेहिंतो उववजंति ?
गोयमा! णो णेरइएहितो उववजंति, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहितो उववज्जंति, णो देवेहिंतो उववजंति।
एवं चेव वेमाणिया वि सोहम्मीसाणगा भाणितव्वा।
[६५९ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देव किनसे उत्पन्न होते हैं? क्या (वे) नैरयिकों से या तिर्यञ्चयोनिकों से अथवा मनुष्यों से या देवों से उत्पन्न होते हैं?
[६५९ उ.] गौतम! (वे) नारकों से उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। देवों से उत्पन्न नहीं होते।
इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के वैमानिक देवों (की उत्पत्ति के विषय में) कहना चाहिए। ६६०. एवं सणंकुमारगा वि। णवरं असंखेन्जवासाउयअकम्मभूमगवन्जेहिंतो उववजंति।
[६६०] सनत्कुमार देवों के उपपात के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर (पूर्वोक्त सबसे) उत्पन्न होते हैं।
६६१. एवं जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवा भाणितव्वा।
[६६१.] सहस्रारकल्प तक (अर्थात् माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार कल्प) के देवों का उपपात भी इसी प्रकार कहना चाहिए।
६६२. [१] आणयदेवा णं भंते! कतोहिंतो उववजंति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववजंति, नो तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति मणुस्सेहितो उववजंति, नो देवेहिंतो।
__ [६६२-१ प्र.] भगवन् ! आनत देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से (अथवा) यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ?
[६६२-१ उ.] गौतम! (वे) नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं। देवों से (उत्पन्न) नहीं (होते)।।
[२] जति मणुस्सेहिंतो उववजंति किं सम्मुच्छिममणुस्सेहिंतो गब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववजंति ?