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________________ ५००] [प्रज्ञापना सूत्र [६५६-१ उ.] गौतम! (वे) नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं और यावत् देवों से भी उत्पन्न होते हैं। [२] जति नेरइएहितो उववजंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहितो जाव अहेसत्तमापुढविनेरएहितो उववज्जंति ? गोयमा! रतणप्पभापुढविनेरइएहिंतो वि जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववजंति, नो अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववन्जंति। . [६५६-२ प्र.] (भगवन् !) यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् अधःसप्तमी (तमस्तमा) पृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५६-२ उ.] गौतम! (वे) रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से लेकर यावत् तमःप्रभापृथ्वी तक के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु अध:सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते। [३] जति तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति ? एवं जेहिंतो पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं उववाओ भणितो तेहिंतो मणुस्साण वि णिरवसेसो भाणितव्वो। नवरं अधेसत्तमापुढविनेरइय-तेउ-वाउकाइएहितो ण उववजंति। सव्वदेवेहितो वि उववज्जावेयव्वा जाव कप्पातीतगवेमाणिय-सव्वट्ठसिद्धदेवेहितो वि उववज्जावेयव्वा। [६५६-३ प्र.] (भगवन् !) यदि मनुष्य तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (या यावत् पंचेन्द्रिय तक के तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ?) [६५६-३ उ.] (गौतम!) जिन-जिनसे पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का उपपात (उत्पत्ति) कहा गया है, उन-उनसे मनुष्यों का भी समग्र उपपात उसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि (मनुष्य) अधःसप्तमीनरकपृथ्वी के नैरयिकों, तेजस्कायिकों और वायुकायिकों से उत्पन्न नहीं होते। (दूसरी विशेषता यह है कि मनुष्य का) उपपात सर्व देवों से कहना चाहिए, यावत् कल्पातीत वैमानिक देवोंसर्वार्थसिद्धविमान तक के देवों से भी (मनुष्यों की) उत्पत्ति समझनी चाहिए। ६५७. वाणमंतरदेवा णं भंते! कओहिंतो उववन्जंति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववजंति ? गोयमा! जेहिंतो असुरकुमारा । [६५७ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? [६५७ उ.] गौतम! जिन-जिनसे असुरकुमारों की उत्पत्ति कही है, उन-उनसे वाणव्यन्तर देवों की उत्पत्ति कहनी चाहिए। ६५८. जोइसियदेवा णं भंते! कतोहिंतो उववजंति ? गोयमा! एवं चेव। नवरं सम्मुच्छिम असंखेज्जवासाउयखहयर-अंतरदीवमणुस्सवज्जेहिंतो उववज्जावेयव्वा। [६५८ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देव किन (कहाँ) से (आकर) उत्पन्न होते हैं ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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