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छठा व्युत्क्रान्तिपद ]
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[२] जति नेरइएहिंतो उववजंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववजंति ? जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववजंति ?
गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरइएहितो वि जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो वि उववजंति।
[६५५-२ प्र.] (भगवन् !) यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमी (तमस्तमा) पृथ्वी (तक) के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५५-२ उ.] गौतम! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं।
[३] जति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिदिएहितो उववजंति ? जाव पंचेंदिएहितो उववज्जति ?
गोयमा! एगिदिएहितो जाव पंचेंदिएहितो वि उववजंति।
[६५५-३ प्र.] (भगवन्!) यदि तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (या) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५५-३ उ.] गौतम! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं। । [४] जति एगिदिएहिंतो उववजंति किं पुढविकाइएहितो उववजंति ?
एवं जहा पुढविकाइयाणं उववाओ भणितो तहेव एएसिं पि भाणितव्यो। नवरं देवेहितो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो वि उववजंति, नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो जाव अच्चुएहितो वि उववज्जंति।
[६५५-४ प्र.] भगवन् ! यदि (वे) एकेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या यावत् वनस्पतिकायिकों (तक) से उत्पन्न होते हैं ?
[६५५-४ उ.] गौतम! इसी प्रकार जैसे पृथ्वीकायिकों का उपपात कहा है, वैसे ही इनका (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का) भी उपपात कहना चाहिए। विशेष यह है कि देवों से-यावत् सहस्रारकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से भी उत्पन्न होते हैं, किन्तु आनतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों से लेकर अच्युतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से (वे) उत्पन्न नहीं होते।
६५६. [१] मणुस्सा णं भंते ! कतोहितो उववज्जंति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा! नेरइएहितो वि उववजंति जाव देवेहितो वि उववजंति।
[६५६-१ प्र.] भगवन्! मनुष्य कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं?