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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४९९ [२] जति नेरइएहिंतो उववजंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववजंति ? जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववजंति ? गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरइएहितो वि जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो वि उववजंति। [६५५-२ प्र.] (भगवन् !) यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमी (तमस्तमा) पृथ्वी (तक) के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५५-२ उ.] गौतम! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं। [३] जति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिदिएहितो उववजंति ? जाव पंचेंदिएहितो उववज्जति ? गोयमा! एगिदिएहितो जाव पंचेंदिएहितो वि उववजंति। [६५५-३ प्र.] (भगवन्!) यदि तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (या) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५५-३ उ.] गौतम! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं। । [४] जति एगिदिएहिंतो उववजंति किं पुढविकाइएहितो उववजंति ? एवं जहा पुढविकाइयाणं उववाओ भणितो तहेव एएसिं पि भाणितव्यो। नवरं देवेहितो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो वि उववजंति, नो आणयकप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो जाव अच्चुएहितो वि उववज्जंति। [६५५-४ प्र.] भगवन् ! यदि (वे) एकेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या यावत् वनस्पतिकायिकों (तक) से उत्पन्न होते हैं ? [६५५-४ उ.] गौतम! इसी प्रकार जैसे पृथ्वीकायिकों का उपपात कहा है, वैसे ही इनका (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का) भी उपपात कहना चाहिए। विशेष यह है कि देवों से-यावत् सहस्रारकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से भी उत्पन्न होते हैं, किन्तु आनतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों से लेकर अच्युतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से (वे) उत्पन्न नहीं होते। ६५६. [१] मणुस्सा णं भंते ! कतोहितो उववज्जंति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा! नेरइएहितो वि उववजंति जाव देवेहितो वि उववजंति। [६५६-१ प्र.] भगवन्! मनुष्य कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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