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________________ ४९८] [प्रज्ञापना सूत्र [६५०-१७ उ.] गौतम! (वे) कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। [१८] जति कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति किं सोहम्मेहंतो जाव अच्चुएहितो उववज्जति। गोयमा! सोहम्मीसाणेहिंतो उववजंति, नो सणंकुमार जाव अच्चुएहितो उववजंति। [६५०-१८ प्र.] (भगवन् !) यदि कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे (पृथ्वीकायिक) सौधर्म (कल्प के देवों) से यावत् अच्युत(कल्प तक के) देवों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-१८ उ.] गौतम ! (वे) सौधर्म और ईशान कल्प के देवों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार से लेकर अच्युत कल्प तक के देवों से उत्पन्न नहीं होते। ६५१. एवं आउक्काइया वि। [६५१] इसी प्रकार अप्कायिकों की उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए। ६५२. एवं तेउ-वाऊ वि। नवरं देववजेहिंतो उववजंति। [६५२] इसी प्रकार तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की उत्पत्ति के विषय में समझना चाहिए। विशेष यह है कि (ये दोनों) देवों को छोड़कर (दूसरों-नारकों, तिर्यञ्चों तथा मनुष्यों-से) उत्पन्न होते हैं। ६५३. वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया। [६५३] वनस्पतिकायिकों की उत्पत्ति के विषय में कथन, पृथ्वीकायिकों के उत्पत्ति-विषयक कथन की तरह समझना चाहिए। ६५४. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरेंदिया एते जहा तेउ-वाऊ देववज्जेहिंतो भाणितव्वा। [६५४] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति तेजस्कायिकों और वायुकायिकों की उत्पत्ति के समान समझनी चाहिए। देवों को छोड़ कर (अन्य-नारकों, तिर्यञ्चों तथा मनुष्यों से) इनकी उत्पत्ति कहनी चाहिए। ६५५. [१] पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कतोहिंतो उववजंति ? किं नेरइएहितो उववजंति ? जाव देवेहिंतो उववजंति ? गोयमा! नेरइएहितो वि तिरिक्खजोणिएहितो वि मणूसेहितो वि देवेहितो वि उववजंति। [६५५-१ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं? क्या वे नारकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? [६५५-१ उ.] गौतम! (वे) नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों से भी, मनुष्यों से भी और देवों से भी उत्पन्न होते हैं।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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