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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४९७ गोयमा! भवणवासिदेवेहितो वि उववजंति जाव वेमाणियदेवेहितो वि उववजंति। [६५०-१३ प्र.] (भगवन् !) यदि देवों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-१३ उ.] गौतम! भवनवासी देवों से भी उत्पन्न होते हैं, यावत् वैमानिक देवों से भी उत्पन्न होते हैं। [१४] जति भवणवासिदे वेहिं तो उववजंति किं असुर कु मार देवेहिं तो जाव थणियकुमारदेवेहिंतो उववज्जंति। गोयमा! असुरकुमारदेवेहितो वि जाव थणियकुमारदेवेहितो वि उववजंति। [६५०-१४ प्र.] (भगवन् !) यदि (ये) भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं तो असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक (दस प्रकार के भवनवासी देवों में से) किनसे उत्पन्न होते हैं ? [६५०-१४ उ.] गौतम! (ये) असुरकुमार देवों से यावत् स्तनितकुमार देवों तक से भी (दस ही प्रकार के भवनवासी देवों से) उत्पन्न होते हैं। [१५] जति वाणमंतरेहिंतो उववजंति किं पिसाएहिंतो जाव गंधव्वेहिंतो उववज्जंति ? गोयमा! पिसाएहितो वि जाव गंधव्वेहितो वि उववजंति। [६५०-१५ प्र.] ( भगवन् !) यदि (वे) वाणव्यन्तर देवों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पिशाचों से यावत् गन्धर्वो से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-१५ उ.] गौतम! (वे) पिशाचों से यावत् गन्धर्वो (तक के सभी प्रकार के वाणव्यन्तर देवों) से उत्पन्न होते हैं। [१६] जइ जोइसियदेवेहिंतो उववजंति किं चंदविमाणेहिंतो जाव ताराविमाणेहिंतो उववजंति ? गोयमा! चंदविमाणजोइसियदेवेहितो वि जाव ताराविमाणजोइसियदेवेहितो वि उववजंति। [६५०-१६ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या चन्द्रविमान के ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् ताराविमान के ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-१६ उ.] गौतम! चन्द्रविमान के ज्योतिष्क देवों से भी उत्पन्न होते हैं तथा यावत् ताराविमान के ज्योतिष्कदेवों से भी उत्पन्न होते हैं। [१७] जति वेमाणियदेवेहिंतो उववजंति किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति ? कप्पातीतगवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति ? गोयमा! कप्पोवगवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति, नो कप्पातीयवेमाणियदेवेहिंतो उववजंति। [६५०-१७ प्र.] (भगवन् !) यदि वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं या कल्पातीत वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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