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[प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! दोहितो वि उववजंति।
[६५०-८] (भगवन् !) यदि द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से (आकार) वे (एकेन्द्रिय जीव) उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं?
[६५०-८ उ.] गौतम ! (वे उपर्युक्त) दोनों से भी उत्पन्न होते हैं। [९] एवं तेइंदिय-चरिदिएहितो वि उववजंति। [६५०-९] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से भी (वे) उत्पन्न होते हैं। [१०] जति पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं जलयरपंचेंदियेहिंतो उववज्जति ?
एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ भणितो तेहिंतो एतेसिं पि भाणितव्वो। नवरं पज्जत्तग-अपज्जत्तगेहिंतो वि उववज्जंति, सेसं तं चेव।
[६५०-१० प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं (या अन्य स्थलचर आदि पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं?)
[६५०-१०उ.] (गौतम!) एवं जिन-जिन से नैरयिकों के उपपात के विषय में कहा है, उन-उन से इनका (पृथ्वीकायिकों से लेकर वनस्पतिकायिकों तक का) भी उपपात कह देना चाहिए। विशेष यह है कि पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों से भी उत्पन्न होते हैं। शेष (सब निरूपण) पूर्ववत् समझना चाहिए।
[११] जति मणुस्सेहिंतो उववजंति किं सम्मुच्छिममणूसेहिंतो उववजंति ? गब्भवक्कंतियमणूसेहिंतो उववजंति ?
गोयमा ! दोहितो वि उववजंति।
[६५०-११ प्र.] (भगवन्!) यदि (वे) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूछिम मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-११ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक दोनों (सम्मूछिम और गर्भज)से उत्पन्न होते हैं।
[१२] जति गब्भवक्कंतियमणूसेहितो उववजंति कि कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसेहितो उववजंति ? अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसेहिंतो उववजंति ?
सेसं जहा नेरइयाणं (सु. ६३९ [४-२६ ])। नवरं अपज्जत्तएहितो वि उववजंति।
[६५०-१२ प्र.] (भगवन् !) यदि गर्भज मनुष्यों से (आकर) उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-१२ उ.] (गौतम!) शेष जो (कथन) नैरयिकों के (उपपात के) सम्बन्ध में (सू. ६३९४ से २६ तक में) कहा है, वही (पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।) विशेष यह है कि (ये) अपर्याप्तक (कर्मभूमिज गर्भज) मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं। _[१३ ] जति देवेहितो उववजंति किं भवणवासि-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहितो ?