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________________ [४९५ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। [३] जति एगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति कि पुढविकाइएहितो जाव वणप्फइकाइएहिंतो उववजंति? गौयमा! पुढविकाइएहितो वि जाव वणप्फइकाइएहिंतो वि उववज्जंति। [६५०-३ उ.] (भगवन् !) यदि एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पृथ्वीकायिकों से यावत् वनस्पतिकायिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? [६५०-३] गौतम! पृथ्वीकायिकों से भी यावत् वनस्पतिकायिकों से भी (आकार) उत्पन्न होते हैं। [४] जाति पुढविकाइएहितो उववजंति किं सुहमपुढविकाइएहितो उववजंति ? बादरपुढविकाइएहिंतो उववजंति ? गोयमा! दोहितो वि उववजंति। [६५०-४ प्र.] (भगवन् !) यदि पृथ्वीकायिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-४ उ.] गौतम! (वे उपर्युक्त) दोनों से उत्पन्न होते हैं। [५] जति सुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तसुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति? अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति । गोयमा! दोहितो वि उववजंति। [६५०-५ प्र.] (भगवन् !) यदि सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से (आकर वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं अथवा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-५] गौतम ! (वे उपर्युक्त) दोनों से ही (आकर) उत्पन्न होते हैं । [६] जति बादरपुढविकाइएहिंतो उववजंति किं पन्जत्तएहितो-अपज्जत्तएहितो उववजंति ? गोयमा! दोहितो वि उववजंति। [६५०-६ प्र.] (भगवन्!) यदि बादर पृथ्वीकायिकों से (आकर) वे उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६५०-६ उ.] गौतम! (पूर्वोक्त) दोनों से ही (वे) उत्पन्न होते हैं। [७] एवं जाव वणप्फतिकाइया चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वा। [६५०-७] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों तक चार-चार भेद करके उनके उपपात के विषय में कहना चाहिए। [८] जति बेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं पज्जत्तयबेइंदिएहितो उववजंति ? अपज्जत्तयबेइंदिएहिंतो उववजंति?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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