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छठा व्युत्क्रान्तिपद ] योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं।
[३] जति एगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति कि पुढविकाइएहितो जाव वणप्फइकाइएहिंतो उववजंति?
गौयमा! पुढविकाइएहितो वि जाव वणप्फइकाइएहिंतो वि उववज्जंति।
[६५०-३ उ.] (भगवन् !) यदि एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पृथ्वीकायिकों से यावत् वनस्पतिकायिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-३] गौतम! पृथ्वीकायिकों से भी यावत् वनस्पतिकायिकों से भी (आकार) उत्पन्न होते हैं।
[४] जाति पुढविकाइएहितो उववजंति किं सुहमपुढविकाइएहितो उववजंति ? बादरपुढविकाइएहिंतो उववजंति ?
गोयमा! दोहितो वि उववजंति।
[६५०-४ प्र.] (भगवन् !) यदि पृथ्वीकायिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-४ उ.] गौतम! (वे उपर्युक्त) दोनों से उत्पन्न होते हैं।
[५] जति सुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तसुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति? अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएहिंतो उववजंति ।
गोयमा! दोहितो वि उववजंति।
[६५०-५ प्र.] (भगवन् !) यदि सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से (आकर वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं अथवा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-५] गौतम ! (वे उपर्युक्त) दोनों से ही (आकर) उत्पन्न होते हैं । [६] जति बादरपुढविकाइएहिंतो उववजंति किं पन्जत्तएहितो-अपज्जत्तएहितो उववजंति ? गोयमा! दोहितो वि उववजंति।
[६५०-६ प्र.] (भगवन्!) यदि बादर पृथ्वीकायिकों से (आकर) वे उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-६ उ.] गौतम! (पूर्वोक्त) दोनों से ही (वे) उत्पन्न होते हैं। [७] एवं जाव वणप्फतिकाइया चउक्कएणं भेदेणं उववाएयव्वा।
[६५०-७] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों तक चार-चार भेद करके उनके उपपात के विषय में कहना चाहिए।
[८] जति बेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं पज्जत्तयबेइंदिएहितो उववजंति ? अपज्जत्तयबेइंदिएहिंतो उववजंति?