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[प्रज्ञापना सूत्र
पृथ्वी तक उत्पन्न होते हैं। नरकपृथ्वियों में (पूर्वोक्त जीवों का) यह परम (उत्कृष्ट उपपात समझना चाहिए॥ १८३-१८४॥
६४८. असुरकुमारा णं भंते! कतोहिंतो उववज्जति ?
गोयमा! नो नेरइएहितो उववज्जति, तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, मणुएहितो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जति। एवं जेहिंतो नेरइयाणं उववाओ तेहिंतो असुरकुमाराण वि भाणितव्यो। नवरं असंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमग-अन्तरदीवगमणुस्सतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववजंति। सेसं तं चेव।
[६४८ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से उत्पन्न होते हैं ?
[६४८ उ.] गौतम! ( वे) नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, परन्तु देवों से उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार जिन-जिन से नारकों का उपपात कहा गया है, उन-उन से असुरकुमारों का भी उपपात कहना चाहिए। विशेषता यह है कि (ये) असंख्यातवर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिज एवं अन्तर्वीपज मनुष्यों और तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। शेष सब बातें वही (पूर्ववत्) समझनी चाहिए।
६४९. एवं जाव थणियकुमारा। [६४९] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक के उपपात के विषय में कहना चाहिए।
६५०[१] पुढविकाइया णं भंते! कओहिंतो उववनंति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववनंति ?
गोयमा! नो नेरइएहितो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहितो मणुयजोणिएहितो देवेहितो वि उववज्जति! ___[६५०-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नारकों से, तिर्यंचों से मनुष्यों से अथवा देवों से उत्पन्न होते हैं ?
[६५०-१ उ.] गौतम! (वे) नारकों से उत्पन्न नहीं होते (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों से, मनुष्ययोनिकों से तथा देवों से भी उत्पन्न होते हैं।
[२] जति तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ?
गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जंति।
[६५०-२ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? __ [६५०-२ उ.] गौतम ! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च