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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४९३ [६४५-४ प्र.] भगवन्! यदि कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते है तो क्या संख्यात-वर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा असंख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? [६४५-४ उ.] गौतम! (वे) संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किन्तु) असंख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से नहीं उत्पन्न होते। [५] जति संखेज्जवासाउएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति। [६४५-५ 'प्र.] (भगवन्) ! यदि (तमः प्रभापृथ्वी के नैरयिक) संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं अथवा अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते है ? [६४५-५ उ.] गौतम! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते है, अपर्याप्तकों से उत्पन्न नहीं होते। [६] जति पज्जत्तयसंखेजवासाउयकम्मभूमएहितो उववज्जति किं इत्थीहितो उववज्जति ? पुरिसेहितो उववज्जति ? नपुंसएहितो उववज्जति ? गोयमा! इत्थीहितो वि उववज्जंति, पुरिसेहितो वि उववज्जंति, नपुंसएहितो वि उववजंति। [६४५-६ प्र.] (भगवन्) यदि वे पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या स्त्रियों से उत्पन्न होते हैं ? या पुरुषों से उत्पन्न होते हैं ? अथवा नपुंसकों से उत्पन्न होते हैं ? - [६४५-६ उ.] गौतम (वे) स्त्रियों से उत्पन्न होते हैं,पुरुषों से भी उत्पन्न होते हैं और नपुंसकों से भी उत्पन्न होते हैं। ६४६. अधेसत्तमापुढविनेरइया णं भंते! कतोहितो उववज्जति ? गोयमा! एवं चेव। नवरं इत्थीहितो [वि] पडिसेधो कातव्वो। [६४६ प्र.] भगवन्! अधः सप्तमी (तमस्तमा) पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? [६४६ उ.] गौतम इनकी उत्पत्ति-सम्बन्धी प्ररूपणा इसी प्रकार (छठी तम:पृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के समान) समझनी चाहिए। विशेष यह है कि स्त्रियों से इनके उत्पन्न होने का निषेध करना चाहिए। ६४७. अस्सण्णी खलु पढम, दोच्चं च सिरीसिवा, तइयं पक्खी। सीहा जंति चउत्थिं, उरगा पुण पंचमीपुढविं ॥ १८३॥ छट्टिं च इत्थियाओ, मच्छा मणुया य सत्तमिं पुढविं। एसो परमुववाओ बोधव्वो नरयपुढवीणं ॥१८४॥ [६४७. संग्रहगाथार्थ-] असंज्ञी निश्चय ही पहली (नरकभूमि) में, सरीसृप (रेंगकर चलने वाले सर्प आदि) दूसरी (नरकपृथ्वी) तक, पक्षी तीसरी (नरकपृथ्वी) तक, सिंह चौथी (नरक-पृथ्वी) तक, उरग पांचवीं पृथ्वी तक, स्त्रियाँ छठी (नरकभूमि) तक और मत्स्य एवं मनुष्य (पुरुष) सातवीं (नरक)
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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