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________________ ४९२ ] [ प्रज्ञापना सूत्र ६४४. धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहा पंकप्पभापुढविनेरइया । नवरं चउप्पएहिंतो वि पडिसेहो कातव्वो । [६४४ प्र.] भगवन्! धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? [६४४ उ.] गौतम! जैसे पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के उत्पाद के विषय में कहा, उसी प्रकार इनके उत्पाद के विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि चतुष्पद (स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों) से ( इनकी उत्पत्ति का ) निषेध करना चाहिए | ६४५. [ १ ] तमापुढविनेरइया णं भंते! कतोहिंतो उववज्र्ज्जति ? गोयमा ! जहा धूमप्पभापुढविनेरइया । नवरं थलयरेहिंतो वि पडिसेहो कातव्वो । [६४५-१ प्र.] भगवन्! तमः पृथ्वी के नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? [६४५-१ उ.] गौतम! जैसे धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के विषय में कहा, वैसे ही इस पृथ्वी के नैरयिकों की उत्पत्ति के विषय में समझना चाहिए। विशेष यह है कि स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से इनकी उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए । [२] इमेण अभिलावेणं-जति पंचिंदियतिरिक्खजोणिएर्हितो उववज्र्ज्जति किं जलयरपंचेंदिएहिंतो उववज्जंति? थलयरपंचेंदिएहिंतो उववज्जंति ? खहयरपंचिंदिएहिंतो उववज्र्ज्जति ? गोयमा ! जलयरपंचेंदिएहिंतो उववज्जंति, नो थलयरेहिंतो नो खयरेहिंतो उववज्जति । . [६४५-२ प्र.]इस (पूर्वोक्त) अभिलाप (कथन) अनुसार – यदि वे (धूमप्रभा पृथ्वी - नारक ) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या जलचर पंचेन्द्रिय से उत्पन्न होते हैं ? या स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते ? अथवा खेचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं ? (६४५ - २ उ. ) गौतम! (वे) जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते है, किन्तु न तो स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं और न ही खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं । [३] जति मणुस्सेहिंतो उववज्र्ज्जति किं कम्मभूमएहिंतो अकम्मभूमएहिंतो अन्तरदीवएहिंतो ? गोयमा ! कम्मभूएहिंतो उववज्जंति, नो अकम्मभूमएहिंतो उववज्जंति, नो अंतरदीवएहिंतो । [६४५-३ प्र.] भगवन्! यदि (वे) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कर्मभूमिज मनुष्यों से या अकर्मभूमिज मनुष्यों से अथवा अन्तद्वपज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? [६४५-३ उ.] गौतम! (वे ) कर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु न तो अकर्मभूमिज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं और न अन्तद्वपज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । [४] जति कम्मभूमएहिंतो उववज्जति किं संखेज्जवासाउएहिंतो असंखेज्जवासाउएंहिंतो उववज्जति ? गोमा ! संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जति ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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