SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४८९ गोयमा! दोहितो वि उववज्जंति। ___ [६३९-१९ प्र.] (भगवन् !) यदि खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, तो क्या सम्मूर्छि म खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, या गर्भज खेचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-१९ उ.] गौतम! दोनों से (सम्मूच्छिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से तथा गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से) उत्पन्न होते हैं। [२०] जति सम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तएहितो उववजंति ? अपज्जत्तएहिंतो उववजंति ? गोयमा! पज्जत्तएहिंतो उववजंति । नो अपज्जत्तएहिंतो उववजंति। [६३९-२० प्र.] (भगवन् !) यदि सम्मूछिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न. होते हैं, तो क्या (वे) पर्याप्तक सम्मूर्छिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्तक सम्मूछिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-२० उ.] गौतम! (वे) पर्याप्तक सम्मूछिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक सम्मूछिम खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न नहीं होते। [२१] जति गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेन्जवासाउएहितो उववजंति ? असंखेज्जवासाउएहितो उववजंति ? गोयमा! संखिज्जवासाउएहिंतो उववन्जंति, नो असंखेज्जवासाउएहितो उववजंति। ___ [६३९-२१ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यातवर्षायुष्क गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यातवर्षायुष्क गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-२१ उ.] गौतम! (वे) संख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) असंख्यातवर्षायुष्क गर्भज-खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते। [२२] जति संखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तएहिंतो उववजंति ? अपज्जत्तएहिंतो उववजंति ? गोयमा! पज्जत्तएहिंतो उववजंति, नो अपज्जत्तएहितो उववजंति। [६३९-२२ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) संख्यातवर्षायुष्क गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क गर्भज खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy