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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४८७ [१३] यदि उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं सम्मच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति? गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति ? गोयमा! सम्मुच्छिमेहितो वि उववजंति, गब्भवक्कंतिएहितो वि उववति। [६३९-१३ प्र.] भगवन् ! यदि उरः परिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, तो क्या सम्मूर्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं, अथवा गर्भज-उर:परिसर्पस्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-१३ उ.] गौतम! (वे) सम्मूर्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं और गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। । [१४] जति सम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तगेहिंतो उववज्जंति ? अपज्जत्तगेहिंतो उववजंति ? गोयमा! पज्जत्तगसम्मुच्छिमेहिंतो उववजंति, नो अपज्जत्तगसम्मुच्छिमउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति। __ [६३९-१४ प्र.] भगवन् ! यदि (वे) सम्मूर्च्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक-सम्मूर्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्तक-सम्मूर्च्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उतपन्न होते हैं ? • [६३९-१४ उ.] गौतम! (वे) पर्याप्तक-सम्मूर्छिम -उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक-सम्मूर्च्छिम-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते। . [१५] जति गब्भवक्कंतियउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं पज्जत्तएहितो ? अपज्जत्तएहिंतो ? गोयमा! पज्जत्तगगब्भवक्कंतिएहितो उववजंति, नो अपज्जत्तगगब्भवक्कंतिउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति। [६३९-१५ प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) गर्भज उरःपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) पर्याप्तक-गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, या अपर्याप्तक गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-१५ उ.] गौतम! पर्याप्तक-गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक-गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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