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[ प्रज्ञापना सूत्र
वासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्र्ज्जति । [६३९-१० प्र.](भगवन् !) यदि गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (नारक) उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं
[ ६३९ - १० उ. ] गौतम ! (वे) संख्यात वर्ष आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु ) असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न नहीं होते ।
[११] जति संखेज्जवासाउयगब्भवक्कं तियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ?
गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तयसंखेज्जवासाउएहिंती उववज्र्ज्जति ।
[६३९-११ प्र.](भगवन्!) यदि (वे नारक) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तक- संख्यातवर्षायुष्क गर्भज चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा ) अपर्याप्तक-संख्यात-वर्षायुष्क गर्भज-चतुष्पदस्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६३९-११ उ.] गौतम! (वे) पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, ( किन्तु ) अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- गर्भज- चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिकों से नहीं उत्पन्न होते ।
[१२] जति परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं उरपरिसप्पथलयर पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जंति ?
गोयमा ! दोहिंतो वि उववज्जति ।
[६३९-१२ प्र.] भगवन् ! यदि (वे) परिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या उरः परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा ) भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ?
[६३९-१२ उ.] गौतम ! वे दोनों ही — अर्थात् — उरः परिसर्प - स्थलचर - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं, और भुजपरिसर्प - स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं ।