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________________ ४८६ ] [ प्रज्ञापना सूत्र वासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउएहिंतो उववज्र्ज्जति । [६३९-१० प्र.](भगवन् !) यदि गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (नारक) उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं [ ६३९ - १० उ. ] गौतम ! (वे) संख्यात वर्ष आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु ) असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज - चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न नहीं होते । [११] जति संखेज्जवासाउयगब्भवक्कं तियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति किं पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तयसंखेज्जवासाउएहिंती उववज्र्ज्जति । [६३९-११ प्र.](भगवन्!) यदि (वे नारक) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तक- संख्यातवर्षायुष्क गर्भज चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा ) अपर्याप्तक-संख्यात-वर्षायुष्क गर्भज-चतुष्पदस्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-११ उ.] गौतम! (वे) पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, ( किन्तु ) अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क- गर्भज- चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चयोनिकों से नहीं उत्पन्न होते । [१२] जति परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं उरपरिसप्पथलयर पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जंति ? गोयमा ! दोहिंतो वि उववज्जति । [६३९-१२ प्र.] भगवन् ! यदि (वे) परिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या उरः परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा ) भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-१२ उ.] गौतम ! वे दोनों ही — अर्थात् — उरः परिसर्प - स्थलचर - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं, और भुजपरिसर्प - स्थलचर-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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