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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [४८५ [७] जइ थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं चउप्पयथलचरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति ? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा! चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववज्जंति, परिसप्पथलयरपंचेंदियति-रिक्खजोणिएहितो वि उववजंति। ___ [६३९-७ प्र.](भगवन् !) यदि (वे) स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ?, (अथवा) परिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-७ उ.] गौतम! (वे) चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं और परिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। [८] जदि चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं सम्मुच्छिमेहितो उववजंति ? गब्भवक्कंतिएहितो उववज्जति ? गोयमा! सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो वि उववजंति, गब्भवक्कंतियचउप्पएहितो वि उववजंति। [६३९-८ प्र.] भगवन् ! यदि चतुष्पद-स्थलघर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, तो क्या सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं। अथवा गर्भज-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं ? ___ [६३९-८ उ.] गौतम! (वे) सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं, और गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-प्तिर्यग्योनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। [९] जइ सम्मुच्छिमचउप्पएहितो उववजंति किं पज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदिएहितो उववजंति ? अपज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदिएहितो उववजंति ? गोयमा! पज्जत्तएहिंतो उववजंति, नो अपज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति। [६३९-९ प्र.] (भगवन्!) यदि सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तक-सम्मूच्छिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [६३९-९ उ.] गौतम! (वे) पर्याप्तक-सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु अपर्याप्तक-सम्मूछिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से नहीं उत्पन्न होते। [१०] जति गब्भवक्कं तियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं संखेज्जवासाउगगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उव्वजंति ? असंखेज
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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