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________________ ४८०] [प्रज्ञापना सूत्र सान्तर और निरन्तर उत्पत्ति की व्याख्या- बीच-बीच में कुछ समय छोड़कर व्यवधान से उत्पन्न होना सान्तर उत्पन्न होना है और प्रतिसमय लगातार----विना व्यवधान के उत्पन्न होना, बीच में कोई भी समय खाली न जाना निरन्तर उत्पन्न होना है। चतुर्थ एकसमयद्वार : चौबीसदण्डकवर्ती जीवों और सिद्धों की एक समय में उत्पत्ति और उद्वर्तना की संख्या की प्ररूपणा - ६२६. नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववजंति ? गोयमा! जहण्णेणं एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा उववज्जति। [६२६ प्र.] भगवन् ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? [६२६ उ.] गौतम! जघन्य (कम से कम) एक, दो या तीन उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। ६२७. एवं जाव अहेसत्तमाए। [६२७] इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक समझ लेना चाहिए। । ६२८. असुरकुमारा णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववजंति ? - गोयमा! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेजा वा। [६२८ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ...[६२८. उ.] गौतम! (वे) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात (उत्पन्न होते हैं।) ६२९. एवं णागकुमारा जाव थणियकुमारा वि भाणियव्वा। [६२९] इसी प्रकार नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। ६३०. पुढविकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववजंति ? गोयमा! अणुसमयं अविरहियं असंखेजा उववजंति। [६३० प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [६३० उ.] गौतम! (वे) प्रतिसमय विना विरह (अन्तर) के असंख्यात उत्पन्न होते हैं। ६३१. एवं जाव वाउकाइया। [६३१] इसी प्रकार वायुकायिक जीवों तक कहना चाहिए। ६३२. वणप्फतिकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववजंति ? १. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २०८ (1) प्रज्ञापना प्र. बो. टीका भा. २, पृ. ९७६-९७७
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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