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________________ छठें वक्कंतिपयं छठा व्युत्क्रान्तिपद व्युत्क्रान्तिपद के आठ द्वार - ५५९. बारस १, चउवीसाइं २, सअंतरं ३, एगसमय ४, कत्तो य ५। उव्वट्टण ६, परभवियाउयं ७, च अद्वैव आगरिसा ८॥१८२॥ [५५९ गाथार्थ –] १.द्वादश (बारह), २. चतुर्विंशति (चौबीस),३.सान्तर (अन्तर-सहित), ४. एक समय, ५. कहाँ से ? ६. उद्वर्त्तना, ७.परभव-सम्बन्धी आयुष्य और ८. आकर्ष, ये आठ द्वार (इस व्युत्क्रान्तिपद में) हैं। विवेचन–व्युत्क्रान्तिपद के आठ द्वार– प्रस्तुत सूत्र में एक संग्रहणीगाथा के द्वारा व्युत्क्रान्ति पद के ८ द्वारों का उल्लेख किया गया है। प्रथम द्वादशद्वारः नरकादि गतियों में उपपात और उद्वर्तना का विरहकाल-निरूपण ५६०. निरयगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [५६०. प्र.] भगवान् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [५६० उ.] गौतम! (वह) जघन्य (कम से कम) एक समय तक और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक)बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है।) ५६१. तिरियगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहत्ता। [५६१. प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [५६१ उ.] गौतम! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है।) ५६२. मणुयगती णं भंते! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [५६२ प्र.] भगवन्! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है? [५६२. उ.] गौतम! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है।) १. प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक २०५
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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