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[प्रज्ञापना सूत्र
जीव आयु का तृतीय भाग शेष रहते और सोपक्रमी वर्तमान आयु का त्रिभाग, अथवा विभाग का त्रिभाग या त्रिभाग का त्रिभाग शेष रहते आगामी भव का आयुष्य बांधते हैं। इस प्रकार परभविक
आयुष्यबन्ध की प्ररूपणा की गई है। 0 अष्टम द्वार में जातिनामनिधत्तायु गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु,
प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु, यों आयुबन्ध के ६ प्रकार बताकर यह स्पष्ट किया गया है कि जातिनामादि विशिष्ट आयुबन्ध कौन जीव कितने-कितने आकर्ष से करता है? जातिनामनिधत्तायु आदि से युक्त आयुबन्ध सामान्य जीव तथा नैरयिकादि वैमानिकपर्यन्त जीव जघन्य एक, दो, तीन अथवा अत्कृष्ट आठ आकर्षों से करते हैं, यह प्ररूपणा की गई है। अन्त में, एक से आठ आकर्षों से आयुबन्ध करने वालों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है।
१. (क) पण्णवणासुत्तं भा. २, छठे पद की प्रस्तावना- पृ. ३७ से ७४ तक
(ख) प्रज्ञापनासूत्र मलय.वृत्ति, पत्रांक २०५ (ग) प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनी टीका भा. २, पृ.९२९ से ९३१ तक