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[प्रज्ञापना सूत्र [४९९-१] वाणव्यन्तर देवों में (पर्यायों की प्ररूपणा) असुरकुमारों के समान (समझ लेनी चाहिए)
[२] एवं जोइसिया वेमाणिया। नवरं सट्ठाणे ठितीए तिट्ठाणवडिते भाणितव्वे। से तं जीवपज्जवा।
[४९९-२] ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों में (पर्यायों की प्ररूपणा भी इसी प्रकार की समझनी चाहिए)। विशेष बात यह है कि वे स्वस्थान में स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) हैं।
यह जीव के पर्यायों की प्ररूपणा समाप्त हुई।
विवेचन-वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के पर्यायों की प्ररूपणा—प्रस्तुत सूत्र (४९९) में पूर्वाक्तसूत्रानुसार तीनों प्रकार के देवों के पर्यायों का कथन अतिदेशपूर्वक किया गया है।
अजीव-पर्याय अजीवपर्याय के भेद-प्रभेद और पर्यायसंख्या
५००. अजीवपज्जवा णं भंते कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–रूविअजीवपज्जवा य अरूविअजीवपज्जवा य । [५०० प्र.] भगवन्! अजीपपर्याय कितने प्रकार के कहे हैं ?
[५०० उ.] गौतम! (अजीवपर्याय) दो प्रकार के कहे है; वे इस प्रकार हैं-(१) रूपी अजीव के पर्याय और अरूपी अजीव के पर्याय।
५०१. अरूविअजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा! दसविहा पण्णत्ता। तं जहा-धम्मत्थिकाए १, धम्मत्थिकायस्स देसे २, धम्मत्थिकायस्स पदेसा ३, अधम्मत्थिकाए ४, अधम्मत्थिकायस्स देसे ५, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा ६, आगासत्थिकाए ७, आगासत्थिकायस्स देसे ८, आगासत्थिकायस्स पदेसा ९, अद्धासमए १०।
[५०१ प्र.] भगवन् ! अरूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[५०१ उ.] गौतम! वे दस प्रकार के कहे हैं। यथा—(१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय का देश, (३) धर्मासितकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय का देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, (८) आकाशास्तिकाय का देश, (९) आकाशास्तिकाय के प्रदेश और (१०) अद्धासमय (काल) के पर्याय।
५०२. रूविअजीवपज्जवा णं भंते। कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा! चउविहा पण्णत्ता। तं जहा-खंधा १, खंधदेसा २, खंधपदेसा ३, परमाणुपोग्गले ४। [५०२ प्र.] भगवन् ! रूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे हैं ?
[५०२ उ.] गौतम! वे चार प्रकार के कहे हैं। यथा-(१) स्कन्ध, (२) स्कन्धदेश, (३) स्कन्धप्रदेश और (४) परमाणुपुद्गल (के पर्याय)।