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________________ [ प्रज्ञापना सूत्र मध्यम अवगाहना वाले मनुष्य अवगाहनापेक्षया चतुःस्थानपतित—- मध्यम अवगाहना संख्यातवर्ष की आयु वाले की भी हो सकती है और असंख्यातवर्ष की आयु वाले की भी हो सकती है। असंख्यातवर्ष की आयु वाला मनुष्य भी एक या दो गव्यूत ( गाऊ) की अवगाहना वाला होता है । अतः अवगाहना की अपेक्षा से इसे चतु:स्थानपतित कहा गया है। 1 ४२६ ] चारों ज्ञानों की अपेक्षा से मध्यम - अवगाहनायुक्त मनुष्य षट्स्थानपतित —–मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव, ये चारों ज्ञान द्रव्य आदि की अपेक्षा रखते हैं तथा क्षयोपशमजन्य हैं । क्षयोपशम में विचित्रता होती है, अतएव उनमें तरतमता होना स्वाभाविक है । इसी कारण चारों ज्ञानों की अपेक्षा से मध्यम अवगाहनायुक्त मनुष्यों में षट्स्थानपतित हीनाधिकता बताई गई है । केवलज्ञान के पर्याय की अपेक्षा से वे तुल्य हैं समस्त आवरणों के पूर्णतया क्षय उत्पन्न होने वाले केवलज्ञान में किसी प्रकार की तरतमता नहीं होती; इसलिए केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से मध्यम अवगाहनायुक्त मनुष्य तुल्य है । जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में दो अज्ञान ही क्यों ? - सिद्धान्तानुसार सम्मूच्छिम मनुष्य ही जघन्य स्थिति के होते हैं और वे नियमतः मिथ्यादृष्टि होते हैं । इस कारण जघन्यस्थिति वाले मनुष्यों में दो अज्ञान ही हो सकते हैं, ज्ञान नहीं । अतः यहाँ ज्ञानों का उल्लेख नहीं किया गया है। उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों में दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन क्यों ? – उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम की होती है । अतएव उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन ही पाए जाते हैं। जो ज्ञान वाले होते हैं वे वैमानिक की आयु का बन्ध करते हैं, तब उनमें दो ज्ञान होते हैं । असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों में अवधिज्ञान, अवधिदर्शन या विभंगज्ञान का अभाव होता है। इस कारण इनमें दो ज्ञानों, दो अज्ञानों और दर्शनों का उल्लेख किया गया है; तीन ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों का नहीं । मध्यमगुण कृष्ण मनुष्य स्वस्थान में षट्स्थानपतित-—- मध्यमगुण कृष्णवर्ण के अनन्त तर तम रूप होते हैं, इस कारण वह स्वस्थान में भी षट्स्थानपतित होता है । जघन्य और उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों में ज्ञानादि का अन्तर - जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्य के प्रबल ज्ञानावरणीय कर्म का उदय होने से उसमें अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान नहीं होते जबकि उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्य में तीन ज्ञान और तीन दर्शन होते हैं । उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्य स्वस्थान में षट्स्थानपतित- चूंकि उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्य नियमतः संख्यातवर्ष की आयु वाला ही होता है । संख्यातवर्ष की आयुवाला मनुष्य स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित होता है; किन्तु जो असंख्यातवर्ष की आयुवाला होता है, उसे भवस्वभाव के कारण उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञान नहीं होता । १. (क) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक १९४ (ख) प्रज्ञापनाधिनी प्रमेयबोधिनी टीका भा. २, पृ. ७५३ से ७५९ तक
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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