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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४२३ [३] अजहण्णमणुक्कोसाभिणिबोहियणाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियणाणी।णवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते, सट्ठाणे छट्ठाणवडिते।
_[४९३-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों के पर्यायों के विषय में उत्कृष्ट आभिनिबोधिकज्ञानी मनुष्यों की तरह ही कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित हैं, तथा स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं।
४९४. एवं सुतणाणी वि।
[४९४] इसी प्रकार (जघन्य-उत्कृष्ट-मध्यम) श्रुतज्ञानी (मनुष्यों) के (पर्यायों के) विषय में (सारा पाठ कहना चाहिए।) - ४९५. [१] जहण्णोहिणाणीणं भंते! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा! जहण्णोहिणाणी मणुस्से जहण्णोहिणाणिस्स मणूसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठिईए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसफासपज्जवेहिं दोहिं नाणहिं छट्ठाणवडिए, ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले, मणपज्जवणाणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिए।
[४९५-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? - [४९५-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं (कि जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं) ?
[उ.] गौतम! एक जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य, दूसरे जघन्य अवधिज्ञानी मनुष्य से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित (पाठान्तर की दृष्टि से 'त्रिस्थानपतित') है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों एवं दो ज्ञानों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, मनःपर्यवज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसोहिणाणी वि।
[४९५-२] इसी प्रकार का (कथन) उत्कृष्ट अवधिज्ञानी (मनुष्यों के पर्यायों) के विषय में (कहना चाहिए।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसोहिणाणी वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिए।