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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४०५ प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि वे स्वस्थान में त्रिस्थानपतित हैं। ४६८. [१] जहण्णगुणकालयाणं भंते ! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एव वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णगुणकालए पुढविकाइए जहण्णगुणकालगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसे से हिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, दोहिं अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [४६८-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले पृथ्वीकायिक जीवों (के पर्यायों के परिमाण) की पृच्छा है। [४६८-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्य गुण काले पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम! जघन्य गुण काला एक पृथ्वीकायिक, दूसरे जघन्यगुण काले पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों को अपेक्षा से तुल्य है; काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है; तथा अवशिष्ट वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; एवं दो अज्ञानों और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। [२] एवं उक्कोसगुणकालए वि। [४६८-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले पृथ्वीकायिक जीवों के (पर्यायों के विषय में कथन करना चाहिए।) [३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [ ४६८-२] मध्यम (अजघन्य-अनुत्कृष्ट) गुण काले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। __४६९. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा भाणितव्वा। [४६९] इसी प्रकार (पृथक्-पृथक् जघन्य-मध्यम-उत्कृष्टगुण वाले) पांच वर्णों, दो गन्धों, पांच रसों आठ स्पर्शों (से युक्त पृथ्वीकायिकों के पर्यायों) के विषय में (पूर्वोक्तसूत्रानुसार) कहना चाहिए। ४७०. [१] जहण्णमतिअण्णाणीणं भंते! पुढविकाइयाए पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एव वुच्चति जहण्णमतिअण्णाणीणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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