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[प्रज्ञापना सूत्र से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है, किन्तु स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, दो अज्ञानों की अपेक्षा से एवे अचक्षुदर्शन के पर्यायों की दृष्टि से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसोगाहणए वि।
[४६६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों का कथन भी करना चाहिए।
[३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव। नवरं सट्ठाणे चउट्ठाणवडिते।
[४६६-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों के विषय में भी ऐसा समझना चाहिए। विशेष यह है कि मध्यम अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीव स्वस्थान में अर्थात् अवगाहना की अपेक्षा से भी चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) हैं।
४६७. [१] जहण्णद्वितीयाणं भंते ! पुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णद्वितीयाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णठितीए पुढविकाइए जहण्णठितीयस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठताए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं मति-अण्णाण-सुतअण्णाण-अचक्खुदंसणपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिते। .
[४६७-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्याय कितने कहे गए है? [४६७-१ उ.]गौतम! (उनके) अनन्तपर्याय कहे गए हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे हैं?'
_[उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक, दूसरे जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षु-दर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसठितीए वि।
[४६७-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले (पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों के विषय में भी समझ लेना चाहिए।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे तिट्ठाणवडिते। [४६७-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों के पर्यायों के विषय में इसी