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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४०३ से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से भी तुल्य है; (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित (हीनाधिक) है, वर्ण आदि की दृष्टि से षटस्थानपतित है; आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान के पर्यायों, तीन अज्ञानों तथा तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। ___ [२] एवं उक्कोसोगाहणाए वि। एवं अजहन्नमणुक्कोसोगाहणाएवि। नवरं उक्कोसोगाहणए वि असुरकुमारे ठितीए चउट्ठाणवडिते। [४६४-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले असुरकुमारों के (पर्यायों के) विषय में (समझ लेना चाहिए) तथा इसी प्रकार मध्यम (अजघन्य- अनुत्कृष्ट) अवगाहना वाले असुरकुमारों के (पर्यायों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए।) विशेष यह है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले असुरकुमार स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) हैं। ४६५. एवं जाव थणियकुमारा। [४६५] असुरकुमारों (के पर्यायों की वक्तव्या) की तरह ही यावत् स्तनितकुमारों तक (के पर्यायों को वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए।) विवेचना – जघन्यादियुक्त अवगाहना वाले असुरकुमारादि भवनवासियों के पर्याय —प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ४६४-४६५) में असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना वाले दशविध भवनपतियों के अनन्त पर्यायों का सयुक्तिक निरूपण किया गया है। जघन्यादियुक्त अवगाहनादि विशिष्ट एकेन्द्रियों के पर्याय ४६६. [१] जहण्णोगाहणगाणं भंते! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णता ? गोयमा! जहण्णोगाहणए पुढविकाइए जहण्णोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [४६६-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय प्ररूपित किये गए हैं ? [४६६-१ उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय प्ररूपित किये गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के अनन्तपर्याय हैं ? [उ.] गौतम! जघन्य अवगाहना वाला एक पृथ्वीकायिक, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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