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________________ तत्त्वार्थवार्तिक में अनृद्धिप्राप्त आर्यों के क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कार्य, चरित्रार्य और दर्शनार्य; ये पांच प्रकार प्ररूपित हैं।७९ तत्त्वार्थभाष्य में अनृद्धिप्राप्त आर्यों के क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, शिल्पार्य, कर्मार्य, एवं भाषार्य, ये छः प्रकार उल्लिखित हैं। प्रज्ञापना की दृष्टि से साढ़े पच्चीस देशों में रहने वाले मनुष्य क्षेत्रार्य हैं। इन देशों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव उत्पन्न हुए, इसलिए इन्हें आर्य जनपद कहा है।८१ प्रवचनसारोद्धार में भी आर्य की यही परिभाषा दी गई हैं।८२ जिनदासगणी महत्तर ने लिखा है कि जिन प्रदेशों में यौगलिक रहते थे, जहाँ पर हाकार आदि नीतियों का प्रवर्तन हुआ था; वे प्रदेश आर्य हैं और शेष अनार्य ।८३ इस दृष्टि से आर्य जनपदों की सीमा बढ़ जाती है। तत्त्वार्थभाष्य में लिखा है कि चक्रवर्ती विजयों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य भी आर्य होते हैं। ४ तत्त्वार्थवार्तिक में काशी, कौशल प्रभृति जनपदों में उत्पन्न मनुष्यों को क्षेत्रार्य कहा है। इसका अर्थ यह है कि बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और पंजाब तथा पश्चिमी पंजाब एवं सिन्ध, ये कोई पूर्ण तथा कोई अपूर्ण प्रान्त आर्यक्षेत्र में थे और शेष प्रान्त उस सीमा में नहीं थे। दक्षिणापथ आर्यक्षेत्र की सीमा में नहीं था। उत्तर भारत में आर्यों का वर्चस्व था, संभवतः इसी दृष्टि से सीमानिर्धारण किया गया हो। प्रज्ञापना में साढ़े पच्चीस देशों की जो सूची दी गई है उसमें अवन्ती का उल्लेख नहीं है जबकि अवन्ती श्रमण भगवान् महावीर के समय एक प्रसिद्ध राज्य था। वहाँ का चन्द्रप्रद्योत राजा था। भगवान् महावीर सिन्धुसौवीर जब पधारे थे तो अवन्ती से ही पधारे थे। सिन्धुसौवीर से अवन्ती अस्सी योजन दूर था।८६ दक्षिण में जैनधर्म का प्रचार था फिर भी उन क्षेत्रों को आर्यक्षेत्रों की परिगणना में नहीं लिया गया है। ये विज्ञों के लिए चिन्तनीय प्रश्न है। यह भी बहुत कुछ संभव है, जिन देशों को आर्य नहीं माना गया है संभव है वहाँ पर आर्यपूर्व जातियों का वर्चस्व रहा होगा। प्रज्ञापना में जाति-आर्य मनुष्यों के अम्बष्ठ, कलिंद, विदेह, हरित, वेदक और चुंचुण ये छः प्रकार बताये गये हैं। कुलार्य मानव के भी उग्र, भोग, राज, इक्ष्वाकु, ज्ञात और कौरव यह छः प्रकार बतलाये गये हैं। तत्त्वार्थवार्तिक में जाति-आर्य और कुल-आर्य इन दोनों को भिन्न नहीं माना है। इक्ष्वाकु, ज्ञात और भोग प्रभृति कुलों में समुत्पन्न मानव जात्यार्य होते हैं।७ तत्त्वार्थभाष्य में इक्ष्वाकु, विदेह, हरित, अम्बष्ठ, ७९. तत्त्वार्थवार्तिक ३। ३६, पृष्ठ २०० ८०. तत्त्वार्थभाष्य ३ । १५ । ८१. इत्थुप्पत्ति जिणाणं, चक्कीणं राम कण्हाणं। -प्रज्ञापना १। ११७ ८२. यत्र तीर्थंकरादीनामुत्पत्तिस्तदाय, शेषमनार्यम्। -प्रवचनसारोद्धार, पृष्ठ ४४६ ८३. जेसु केसुवि पएसेसु मिहुणगादि पइट्ठिएसु हक्काराइया नीई परूढा ते आरिया, सेसा अणारिया। -आवश्यकचूर्णि ८४. भरतेषु अर्धषड्विंशतिजनपदेषु जाताः शेषेषु च चक्रवर्तिविजयेषु। -तत्त्वार्थभाष्य ३। १५ ८५. क्षेत्रार्याः काशिकोशलादिषु जाताः। -तत्त्वार्थवार्तिक ३३६, पृष्ठ २०० ८६. गच्छाचार, पृष्ठ १२२ ८७. इक्ष्वाकुज्ञातभोजादिषु कुलेषु जाता जात्यार्यः। -तत्त्वार्थवार्तिक ३। ३६ पृष्ठ २०० [४७ ]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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