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सम्मासबोधि स्वयं के प्रबल प्रयास से बोधि प्राप्त करता है और अन्य व्यक्तियों को भी वह बोधि प्रदान कर सकता है। उसकी तुलना तीर्थंकर से की जा सकती है।७५ आर्य और अनार्यः एक विश्लेषण
सिद्धों के भेद-प्रभेदों की चर्चा करने के पश्चात् संसारी जीवों के विविध भेद बतलाये हैं। इन भेदप्रभेदों का मूल आधार इन्द्रियाँ हैं। संसारी जीवों के इन्द्रियों की दृष्टि से एक, द्वि., त्री., चतुः, पंचइन्द्रिय इस प्रकार पांच भेद किए गए हैं, फिर एकेन्द्रिय में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय आदि के विविध भेद-प्रभेदों की प्रज्ञापना की गई है। एकेन्द्रिय के पश्चात् द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय का वर्णन है। पंचेन्द्रिय में भी नारक एवं तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों का वर्णन करने के पश्चात् मनुष्य का वर्णन किया है। मनुष्य के संमूच्छिम और गर्भज, ये दो भेद किए हैं। संमूछिम मनुष्य औपचारिक मनुष्य हैं; वे गर्भज के मल, मूत्र, कफ आदि अशुचि में ही उत्पन्न होते हैं, इसीलिए उन्हें मनुष्य कहा गया है। गर्भज मनुष्य के कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, अन्तर्वीपज, ये तीन प्रकार हैं।
जीवों की सूक्ष्मता, पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक दृष्टि से भी जीवों के भेद-प्रभेद प्रतिपादित हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक जितने भी जीव हैं, वे संमूछिम हैं। तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और मनुष्य ये गर्भज और संमूछिम दोनों प्रकार के होते हैं। नारक और देव का जन्म उपपात है। संमूछिम और नरक के जीव एकान्त रूप से नपुंसक होते हैं। देवों में स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं, नपुंसक नहीं होते। गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यञ्च में तीनों लिंग होते हैं। इस तरह लिंगभेद की दृष्टि से जीवों के भेद किए गए है। नरकंगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति और देवगति, ये भेद गति की दृष्टि से किए गये हैं। . पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच महाविदेह – ये पन्द्रह कर्मभूमियाँ हैं। यहाँ के मानव कर्म करके. अपना जीवनयापन करते हैं, एतदर्थ इन भूमियों में उत्पन्न मानव कर्मभूमिज कहलाते हैं। कर्मभूमिज मनुष्य के भी आर्य और म्लेच्छ ये दो प्रकार हैं। आर्य मनुष्य के भी ऋद्धिप्राप्त व अनृद्धिप्राप्त ये दो प्रकार हैं। प्रज्ञापना में ऋद्धिप्राप्त आर्य के अरिहन्त, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, चारण और विद्याधर यह छः प्रकार बातये हैं।७६
तत्त्वार्थवार्तिक में ऋद्धिप्राप्त आर्य के बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, बल, औषध, रस और क्षेत्र, ये आठ प्रकार बतलाये हैं।७७
प्रज्ञापना में अनृद्धिप्राप्त आर्य के क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, कार्य, शिल्पार्य, भाषार्य, ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य, ये नौ प्रकार बतलाये हैं।७८
७५. (क) उपासकजनालंकार की प्रस्तावना, पृष्ठ १६
(ख) उपासकजनालंकार लोकोत्तरसम्पत्ति निद्देस, पृष्ठ ३४०
(ग) पण्णवणासुत्तं द्वितीय भाग, प्रस्तावना पृष्ठ ३६ -पुण्यविजयजी ७६. प्रज्ञापना १ सूत्र १०० ७७. तत्त्वार्थवार्तिक ३। ३६, पृष्ठ २०१ ७८. प्रज्ञापना १।१०१
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