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[प्रज्ञापना सूत्र गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा गया कि 'जघन्यगुण काले नारकों के अनन्त पर्याय कहे हैं।'
[२] एवं उक्कोसगुणकालए वि। [४५७-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले (नारकों के पर्यायों के विषय में भी) समझ लेना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते।
[४५७-३] इसी प्रकार अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले नैरयिक के पर्यायों के विषय में जान लेना चाहिए। विशेष इतना ही है कि काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से भी षट्स्थानपतित (हीनाधिक) होता है।
४५८. एवं अवसेसा चत्तारि वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा भाणितव्वा।
[४५८] यों काले वर्ण के पर्यायों की तरह शेष चारों वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श की अपेक्षा से भी (समझ लेना चाहिए।)
४५९. [१] जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं णेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णाभिणिबोहियणाणी णेरइए जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठताए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसफास-पज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले, सुतणाणओहिणाणपज्जवेहि छट्ठाणवडिते, तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते।
[४५९-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४५९-१ उ.] गौतम! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?'
[उ.] गौतम! एक जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी, दूसरे जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से (भी) चतु:स्थानपतित है, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है तथा तीन दर्शनों की अपेक्षा (भी) षट्स्थानपतित है।