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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [३९७ [४५६-१ प्र.] भगवन्! जघन्य स्थिति वाले नारकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४५६-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय है ? [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला नारक, दूसरे जघन्य स्थिति वाले नारक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तथा तीन ज्ञान, तीन अज्ञान एवं तीन दर्शनों की अपेक्षा षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। [२] एवं उक्कोसट्ठितीए वि। [४५६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले नारक के विषय में भी यथायोग्य तुल्य चतु:स्थानपतित, षट्स्थानपतित, आदि कहना चाहिए। [३] अजहण्णुक्कोसद्वितीए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे चउट्ठाणवडिते। [४५६-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले नारक के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्वस्थान में चतु:स्थानपतित है। ४५७. [१] जहण्णगुणकालयाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पन्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णगुणकालए नेरइए जहण्णगुणकालगस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते, से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं नेरइयाणं अणंता पन्जवा पण्णत्ता । [४५७-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४५७-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले नैरयिकों के अनन्त पर्याय [उ.] गौतम! एक जघन्यगुण काला नैरयिक, दूसरे जघन्यगुण काले नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है किन्तु अवशिष्ट वर्ण,
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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