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पंचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[३९९ [२] एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि। __ [४५९-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी नैरयिकों के (पर्यायों के विषय में समझ लेना चाहिए।)
[३अजहण्णमणुक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि एवं चेव नवरं आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते।
[४५९-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि वह आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से भी स्वस्थान में षट्स्थानपतित
४६०. एवं सुतणाणी ओहिणाणी वि। णवरं जस्स णाणा तस्स अण्णाणा णत्थि।
[४६०] श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी नैरयिकों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार (आभिनिबोधिकज्ञानीपर्यायवत्) जानना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके ज्ञान होता है, उसके अज्ञान नहीं होता।
४६१. जहा नाणा तहा अण्णाणा वि भाणितव्वा। नवरं जस्स अण्णाणा तस्स नाणा न भवंति।
[४६१] जिस प्रकार त्रिज्ञानी नैरयिकों के पर्यायों के विषय में कहा, उसी प्रकार त्रिअज्ञानी नैरयिकों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके अज्ञान होते हैं, उसके ज्ञान नहीं होते।
४६२. [१] जहण्णचक्खुदंसणी णं भंते! नेरइयाणं केवतिया पजवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णचक्खुदंसणी णं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णचक्खुदंसणी णं नेरइए जहण्णचक्खुदंसणिस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसफासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं छट्ठाणवडिते, चक्खुदंसणपज्जवेहिं तुल्ले, अचक्खुदंसणपज्जवेहिं ओहिदंसणपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिते।
[४६२-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४६२-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिक के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' ___ [उ.] गौतम! एक जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिक, दूसरे जघन्य चक्षुदर्शनी नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है; वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, तथा तीन ज्ञान और