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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[३९१ अन्तर्मुहूर्त की, एक मास की, एक वर्ष की या एक हजार वर्ष की है। अन्तर्मुहूर्त आदि किसी नियत संख्या से गुणाकार करने पर २२००० वर्ष की संख्या होती है। अतः अन्तर्मुहूर्त आदि की आयुवाला पृथ्वीकायिक, पूर्ण बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले की अपेक्षा संख्यातगुण-हीन है और इसकी अपेक्षा २२००० वर्ष की स्थिति वाला पृथ्वीकायिक संख्यातगुण अधिक है। इसी प्रकार अप्कायिक वनस्पतिकायिक तक के एकेन्द्रिय जीवों की अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार त्रिस्थानपतित न्यूनाधिकता समझ लेनी चाहिए।
___ भावों (वर्णादि या मति-अज्ञानादि के पर्यायों) की अपेक्षा से षट्स्थानपतित न्यूनाधिकता होती है, वहाँ उसे इस प्रकार समझना चाहिए - एक पृथ्वीकायिक आदि, दूसरे पृथ्वीकायिक आदि से अनन्तभागहीन, असंख्यातभागहीन और संख्यातभागहीन अथवा संख्यातगुणहीन, असंख्यातगुणहीन और अनन्तगुणहीन तथा अनन्तभाग-अधिक, असंख्यातभाग-अधिक और संख्यातभाग-अधिक तथा संख्यातगुणा, असंख्यातगुणा और अनन्तगुणा अधिक है।
इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव के वर्णादि या मतिअज्ञानादि विभिन्न भावपर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित हीनाधिकता की तरह अप्कायिक आदि एकेन्द्रियजीवों की षट्स्थानपतित हीनाधिकता समझ लेनी चाहिए।
इन सब दृष्टियों से पृथ्वीकायिक प्रत्येक एकेन्द्रिय जीव के पर्यायों की अनन्तता सिद्ध होती है। विकलेन्द्रिय एवं तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्यायों का निरूपण
४४८. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! बेइंदिए बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए-जति हीणे असंखेजतिभागहीणे वा संखेजतिभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा, अह अब्भहिए असंखेन्जभागमभहिए वा संखेज्जभागमब्भहिए वा संखेगुणमब्भहिए वा असंखेन्जगुणमब्भहिए वा; ठितीए तिट्ठाणवडिते; वण्ण-गंध-रस-फास-आभिणिबोहि यणाण-सुतणाण-मतिअण्णाण-सुतअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। .
[४४८ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४४८ उ.] गौतम! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि द्वीन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक द्वीन्द्रिय जीव दूसरे द्वीन्द्रिय से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेर्शों की अपेक्षा