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________________ ३९०] [प्रज्ञापना सूत्र विवेचनपांच स्थावरों के अनन्तपर्यायों की प्ररूपणा–प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ४४३ से ४४७ तक) में पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक पांचों एकेन्द्रिय स्थावरों के प्रत्येक के पृथक्-पृथक् अनन्त-अनन्त पर्यायों का निरूपण किया गया है। पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों के पर्यायों की अनन्तताः विभिन्न अपेक्षाओं से - मूलपाठ में पूर्ववत् अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित तथा समस्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से एवं मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से पूर्ववत् षट्स्थानपतित हीनाधिकता बता कर इन सब एकेन्द्रिय जीवों के प्रत्येक के पृथक्-पृथक् अनन्तपर्याय सिद्ध किये गए हैं। जहाँ (अवगाहना में) चतु:स्थानपतित होनाधिकता है, वहाँ एक पृथ्वीकायिक आदि दूसरे पृथ्वीकायिक आदि से असंख्यातभाग, संख्यातभाग अथवा संख्यातगुण या असंख्यात गुण हीन होता है, अथवा असंख्यातभाग, संख्यातभाग, या संख्यातगुण अथवा असंख्यातगुण अधिक होता है। यद्यपि पृथ्वीकायिक जीवों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है, किन्तु अंगुल के असंख्यातवें भाग के भी असंख्यात भेद होते हैं, इस कारण पृथ्वीकायिक जीवों की पूर्वोक्त चतुःस्थानपतित हीनाधिकता में कोई विरोध नहीं है। जहाँ (स्थिति में) त्रिस्थानपतित हीनाधिकता होती है, वहाँ पृथ्वीकायिकादि में हीनाधिकता इस प्रकार समझनी चाहिए –एक एकेन्द्रिय दूसरे एकेन्द्रिय से असंख्यातभाग या संख्यातभाग हीन अथवा संख्यातगुणा हीन होता है अथवा असंख्यातभाग अधिक, संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है। इनकी स्थिति में चतुःस्थानपतित हीनाधिकता नहीं होती, क्योंकि इनमें असंख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणवृद्धि सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि पृथ्वीकायिक आदि की सर्वजघन्य आयु क्षुल्लकभवग्रहणपरिमित है। क्षुल्लकभव का परिमाण दो सौ छप्पन आवलिकामात्र है। दो घड़ी का एक मुहूर्त होता है और इस एक मुहूर्त में ६५५३६ भव होते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वीकाय आदि की उत्कृष्ट स्थिति भी संख्यात वर्ष की होती है। अतः इनमें असंख्यातगुणा हानि-वृद्धि (न्यूनाधिकता) नहीं हो सकती। अब रही बात असंख्यातभाग, संख्यातभाग और संख्यातगुणा हानिवृद्धि की, वह इस प्रकार है। जैसे - एक पृथ्वीकायिक की स्थिति परिपूर्ण २२ हजार वर्ष की है, और दूसरे की एक समय कम २२००० वर्ष की है, इनमें से परिपूर्ण २२००० वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक की अपेक्षा, एक समय कम २२००० वर्ष की स्थिति वाला पृथ्वीकायिक असंख्यातभाग हीन कहलाएगा, जबकि दूसरा असंख्यातभाग अधिक कहलाएगा। इसी प्रकार एक की परिपूर्ण २२००० वर्ष की स्थिति है, जबकि दूसरे की अन्तर्मुहूर्त आदि कम २२००० वर्ष की है। अन्तर्मुहूर्त आदि बाईस हजार वर्ष का संख्यातवाँ भाग है। अतः पूर्ण २२ हजार वर्ष की स्थिति वाले की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कम २२ हजार वर्ष की स्थिति वाला संख्यातभाग हीन है और उसकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कम २२००० वर्ष की स्थिति वाला संख्यातभाग ‘अधिक है। इसी प्रकार एक-एक पृथ्वीकायिक की पूरी २२००० वर्ष की स्थिति है, और दूसरे की
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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