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________________ ३८०] [प्रज्ञापना सूत्र तुल्ले सिय अब्भहिए-जइ हीणे असंखेज्जतिभागहीणे वा संखेन्जतिभागहीणे वा संखेन्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहीणे वा, अह अब्भहिए असंखेज्जइभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणभागमब्भहिए वा संखेज्जइगुणमब्भहिए वा असंखेन्जइगुणमब्भहिए वा; कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए—जदि हीणे अणंतभागहीणे वा असंखेज्जइभागहीणे वा संखेज्जइभागहीणे वा संखिज्जइगुणहीणे वा असंखिज्जइगुणहीणे वा अणंतगुणहीणे वा, अह अब्भहिए अणंतभाग-मब्भहिए वा असंखेन्जतिभागमब्भहिए वा संखेजतिभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा अणंतगुणमब्भहिए वा; णीलवण्णपज्जवेहिं लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिद्दवण्ण-पज्जवेहिं सुक्किलवण्णपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; सुब्भिगंधपज्जवेहिं दुब्भिगंधपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए ; तित्तरसपज्जवेहिं कडुयरस-कसायरस-अंबिलरस-महुररसपज्जवेहिय छट्ढाणवडिए, कक्कखडफास-पजवेहिं मउयफासपजवेहिं गरुयफासपज्जवेहिं लहुयफासपज्जवेहिं सीयफासपज्जवेहिं उसिणफासपज्जवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपज्जवेहिं अंबिलरसपज्जवेहिं महुररसपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए; कक्खडफासपज्जवेहिं निद्धफासपज्जवेहि लुक्खफासपज्जवेहि य छटाणवडिए; आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं सुयणाणपज्जवेहिं ओहिणाणपज्जवेहिं मतिअण्णाणपज्जवेहिं सुयअण्णाणपज्जवेहिं विभंगणाणपज्जवेहिं चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहिं ओहिदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते, एएणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चति नेरइयाणं नो संखेन्जा, नो असंखेज्जा, अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [४४० प्र.] भगवन्! नैरयिकों के कितने पर्याय (पर्यव) कहे गए हैं ? [४४० उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! आप किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि नैरयिकों के पर्याय अनन्त हैं ? [उ.] गौतम! एक नारक दूसरे नारक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य · है अवगाहना की अपेक्षा से-कथंचित् (स्यात्) हीन, कथंचित् तुल्य और कथंचित् अधिक (अभ्यधिक) है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है अथवा संख्यातभाग हीन है; या संख्यातगुणा हीन है, अथवा असंख्यातगुणा हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है या संख्यातभाग अधिक है; अथवा संख्यातगुणा अधिक या असंख्यातगुणा अधिक है। स्थिति की अपेक्षा से—(एक नारक दूसरे नारक से) कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन है; अथवा संख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण हीन है। अगर अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक या संख्यातभाग अधिक है; अथवा संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक है। कृष्णवर्ण-पर्यायों की अपेक्षा से—(एक नारक दूसरे नारक से) कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है, तो अनन्तभाग हीन, असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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