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________________ ३४८] [ प्रज्ञापना सूत्र [३९३-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३९३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की है। ३९४. [१] वाणमंतरीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं। [३९४-१ प्र.] भगवन्! वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९४-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अर्द्ध पल्योपम की है। [२] अपज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३९४-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९४-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तियाणं भंते! वाणमंतरीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं अंतोमुत्तूणं। [३९४-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वाणव्यन्तर देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम अर्द्ध पल्योपम की है। विवेचन–वाणव्यन्तर देव-देवियों की स्थिति का निरूपण—प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ३९३-३९४) में वाणव्यन्तर देवों तथा देवियों (औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक) की स्थिति का निरूपण किया गया ज्योतिष्क देवों की स्थिति-प्ररूपणा ३९५. [१] जोइसियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं। [३९५-१ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [३९५-१ उ.] गौतम! (उनकी) जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवां भाग है और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की है। [२] अपज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३९५-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९५-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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