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चतुर्थ स्थितिपद ]
[३९१ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है।
३९२. [ १ ] गब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा ।
गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई ।
[३९२-१ प्र.] भगवन् ! गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९२- १ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है । [ २ ] अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[३९२-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९२-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है । [ ३ ] पज्जत्तयगब्भवक्कंतियमणुस्साणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । [३९२-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक गर्भज मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन पल्योपम की है । विवेचन - मनुष्यों की स्थिति का निरूपण - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ३९० से ३९२ तक) में सामान्य, अपर्याप्तक, पर्याप्तक, सम्मूच्छिम तथा गर्भज ( औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक) मनुष्यों की स्थिति का निरूपण किया गया है।
वाणव्यंतर देवों की स्थिति - प्ररूपणा
३९.३. [ १ ] वाणमंतराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं ।
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[३९३ - १ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९३-१ उ.] गौतम! ( वाणव्यन्तर देवों की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की है, उत्कृष्ट एक पल्योपम की है।
[ २ ] अपज्जत्तयवाणमंतराणं देवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[३९३-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९३-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहुर्त की है ।
[ ३ ] पज्जत्तयाणं वाणमंतराणं देवाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ।