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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३४९ [३] पज्जत्तयजोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहत्तूणो, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं। [३९५-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९५-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। ३९६. [१] जोइसिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासबाससहस्समब्भहियं। [३९६-१ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३९६-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है। [२] अपज्जत्तियाणं जोइसियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३९६-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९६-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तियाणं जोइसियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमट्ठभागो अंतोमुहुत्तूणो, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं. अब्भहियं अंतोमुहत्तूणं। [३९६-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९६-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के आठवें भाग की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास हजार वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है। ३९७. [१] चंदविमाणे णं भंते! देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं , उक्कोसेणं, पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं । [३९७-१ प्र.] भगवन् ! चन्द्रविमान में देवों की स्थिति कितने काल की है? । [३९७-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम का चौथाई भाग है, उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम का है। [२] चंदविमाणे णं भंते! अपजत्तयदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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