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[प्रज्ञापना सूत्र [३६७] सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के औधिक, अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त की है।
३६८. [१] बादरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं। [३६८-१ प्र.] भगवन्! बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३६८-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। [२] अपज्जत्तबादरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
[३६८-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही है?
[३६८-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है।
[३] पज्जत्तबादरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई।
[३६८-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[३६८-३ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है।
विवेचन–एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति की प्ररूपणा–प्रस्तुत १५ सूत्रों (सू. ३५४ से ३६८ तक) में पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक औधिक, अपर्याप्तक, पर्याप्तक, सूक्ष्य, बादर आदि भेदों की स्थिति की पृथक्-पृथक् प्ररूपणा की गई है। ___ इनमें तेजस्कायिक जीवों की तीन अहोरात्रि की उत्कृष्ट स्थिति बताई गई है, उसका रहस्य यह है कि तेजस्कायिक जीव अग्नि के रूप में जलते और बुझते प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। इसी कारण अन्य एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा आयुष्य अत्यन्त अल्प है। द्वीन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा
३६९. [१] बेइंदियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पप्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराई। [३६९-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?