SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ स्थितिपद] [२] अपज्जत्तबादरवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३६५-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६५-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त तक की होती है। [३] पज्जत्तयबादरवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई। __ [३६५-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६५-३ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम तीन हजार वर्ष की है। ३६६ [१] वणप्फइकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं। [३६६-१ प्र.] भगवन्! वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३६६-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। [२] अपज्जत्तवणप्फइकाइयाणं पच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं। [३६६-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६६-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयवणप्फइकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई । [३६६-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६६-३ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है। ३६७. सुहमवणप्फइकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्ताणं पज्जत्ताण य जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy