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________________ ३३२] [प्रज्ञापना सूत्र [२] अपज्जत्तयवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [३६३-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [३६३-२ उ.] गौतम! (उनकी) जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साइं अंतोमुहत्तूणाई। [३६३-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६३-३ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन हजार वर्ष की है। ३६४. [१] सुहुमवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [३६४-१ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है। [३६४-१ उ.] गौतम! (उनकी) जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [२] अपज्जत्तयसुहुमवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३६४-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [३६४-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट (स्थिति) भी अन्तर्मुहुर्त की है। [३] पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [३६४-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३६४-३ उ.] गौतम! उनकी जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। ३६५. [१] बादरवाउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि वाससहस्साई। [३६५-१ प्र.] भगवन् ! बादर वायुकायिकों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [३६५-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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