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________________ चतुर्थ स्थितिपद ] [ ३२५ [३४७-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४७-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम कुछ अधिक सागरोपम की है । ३४८. [ १ ] असुरकुमाराणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओ माई । [३४८-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४८-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम की है । [ २ ] अपज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [३४८-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४८-२] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की हैं, और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की है। [ ३ ] पज्जत्तियाणं असुरकुमारीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाई पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई । [३४८-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक असुरकुमार देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४८-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम साढ़े चार पल्योपम की है । ३४९. [ १ ] णागकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोमा ! जहणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं देसूणाई । [३४९- १ प्र.] भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३४९-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन (कुछ कम) दो पल्योपमों की है। [ २ ] अपज्जत्तयाणं भंते! णागकुमाराणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [३४९-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त नागकुमारों की स्थिति कितने काल तक की कही गई हैं ? [३४९-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [ ३ ] पज्जत्तयाणं भंते! णागकुमाराणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणाई अंतोमुहुत्तूणाई ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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