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________________ [ प्रज्ञापना सूत्र [३४५-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक भवनवासी देवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है? [३४३-३ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम कुछ अधिक सागरोपम की है। ३२४] ३४६. [ १ ] भवणवासिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओ माई । [३४६-१ प्र.] भगवन् ! भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४६-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम की है । [२] अपज्जत्तियाणं भंते! भवणवासिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [ ३४६ - २ प्र.] भगवन्! अपर्याप्तक भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४६-२] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तियाणं भंते! भवणवासिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, अद्धपंचमाइं पलिओ माई अंतोमुहुत्तूणाई । [ ३४६- ३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक भवनवासी देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४६-३ उ.] गौतम! ( उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम साढ़े चार पल्योपम की है । ३४७. [ १ ] असुरकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं । [३४७-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४७-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम की है। [ २ ] अपज्जत्तयअसुरकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [३४७-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त असुरकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३४७ - २] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [ ३ ] पज्जत्तअसुरकुमाराणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं अंतोमुहुत्तूणं ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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