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[प्रज्ञापना सूत्र
पर्याप्त अवस्था की जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम की होती है। आगे भी सर्वत्र इसी प्रकार समझ लेना चाहिए।
पूर्व-पूर्व की उत्कृष्ट स्थिति, आगे-आगे की जघन्य-पहले-पहले की नरकपृथ्वी की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वही अगली-अगली नरकपृथ्वी की जघन्य स्थिति है। जैसे—प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, वही द्वितीय शर्कराप्रभापृथ्वी की जघन्य स्थिति है। देवों और देवियों की स्थिति की प्ररूपणा
३४३. [१] देवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्पात्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। [३४३-१ प्र.] भगवन् ! देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
[३४३-१ उ.] गौतम! (देवों की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है।
[२] अपज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३४३-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्तक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? . [३४३-२] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता
गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
[३४३-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक-देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
[३४३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है।
३४४. [१] देवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं। [३४४-१ प्र.] भगवन् ! देवियों की स्थिति कितने काल तक की स्थिति कही गई है ?
१. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १७० (ख) नारगदेवा तिरिमणुयगब्भजा जे असंखवासाऊ। एए अप्पज्जत्ता उववाए चेव बोद्धव्वा ॥१॥ सेसा य तिरियमणुया लद्धिं पप्पोववायकाले य। दुहओ वि य भयइयव्वा पज्जत्तियरे य जिणवयणे॥२॥
-प्रज्ञापना. मलय् वृत्ति, प. १७० उद्धृत २. प्रज्ञापनासूत्र, प्रमेयबोधिनी टीका भा. २ पृ. ४५०