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________________ चउत्थं ठिइपर्यं चतुर्थ स्थितिपद नैरयिकों की स्थिति की प्ररूपणा ३३५. [ १ ] नेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई । [३३५ - १ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३३५-१ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की कही गई है। [ २ ] अपज्जत्तयनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [३३५-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३३५-२ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की गई है। [ ३ ] पज्जत्तयणेरइयाणं भंते! केवतियं काल ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहूत्तूणाई । [ ३३५ - ३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३३५-३ उ.] गौतम! ( उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। ३३६. [ १ ] रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणेणं दस वाससहस्साईं, उक्कोसेणं सागरोवमं । [३३६-१ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [३३६-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की कही गई है। [ २ ] अपज्जत्तयरयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [३३६-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्तक- रत्नाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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