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[ प्रज्ञापना सूत्र
इस पद में सर्वप्रथम सामान्य नारक, तत्पश्चात् रत्नप्रभादि विशिष्ट नारकों की, भवनवासी देवों की, पृथ्वीकायादि पांच स्थावरों की, द्वीन्द्रियादि तीन विकलेन्द्रियों की, विभिन्न पंचेन्द्रियतिर्यंचों की, फिर विविध मनुष्यों की, समस्त वाणाव्यन्तर देवों की, समस्त ज्योतिष्कदेवों की, तत्पश्चात् वैमानिक देवों की एवं नौ ग्रैवेयक तथा पंच अनुत्तरविमानवासी देवों की स्थिति का निरूपण किया गया है। स्थिति विषयक पाठ पर से फलित होता है कि पुरुष की अपेक्षा स्त्री की स्थिति (आयु) कम है। नारकों और देवों की स्थिति मनुष्य और तिर्यंच की अपेक्षा अधिक है । एकेन्द्रिय में तेजस्कायिक की सबसे कम और पृथ्वीकायिक की स्थिति सबसे अधिक है । द्वीन्द्रिय से त्रीन्द्रिय की तथा चतुरिन्द्रिय से भी त्रीन्द्रिय की स्थिति कम मानी गई है, रहस्य केवलिगम्य है ।
१. (क) पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भा. १, पृ. ११२ से (ख) पण्णवणासुत्तं भा. २, परिशिष्ट पृ. ५८
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