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________________ ३१०] [प्रज्ञापना अपेक्षा) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७०. (उनसे) सूक्ष्म अप्कायिक-पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७१. (उनकी अपेक्षा) सूक्ष्म वायुकायिक-पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७२. (उनसे) सूक्ष्म निगोदअपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ७३. (उनसे) सूक्ष्म निगोद-पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ७४. (उनकी अपेक्षा) अभवसिद्धिक (अभव्य) अनन्तगुणे हैं, ७५. (उनसे) सम्यक्त्व से भ्रष्ट (प्रतिपतित) अनन्तगुणे हैं, ७६. (उनकी अपेक्षा) सिद्ध अनन्तगुणे हैं, ७७. (उनकी अपेक्षा) बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक अनन्तगुणे हैं, ७८. (उनसे) बादरपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७९. (उनकी अपेक्षा) बादर वनस्पतिकायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ८०. (उनकी अपेक्षा) बादर-अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८१. (उनसे) बादर विशेषाधिक है, ८२. (उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ८३. (उनकी अपेक्षा) सूक्ष्मपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८४. (उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ८५. (उनसे) सूक्ष्म- पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ८६. (उनकी अपेक्षा) सूक्ष्म विशेषाधिक हैं, ८७. (उनसे) भवसिद्धिक (भव्य) विशेषाधिक हैं, ८८. (उनकी अपेक्षा) निगोद के जीव विशेषाधिक हैं, ८९. (उनसे) वनस्पति जीव विशेषाधिक हैं, ९०. (उनसे) एकेन्द्रिय-जीव विशेषाधिक हैं, ९१. (उनसे) तिर्यञ्चयोनिक विशेषाधिक हैं, ९२. (उनसे) मिथ्यादृष्टि-जीव विशेषाधिक हैं, ९३. (उनसे) अविरत जीव विशेषाधिक हैं, ९४. (उनकी अपेक्षा) सकषायी जीव विशेषाधिक हैं, ९५. (उनसे) छद्मस्थ जीव विशेषाधिक हैं, ९६. (उनकी अपेक्षा) सयोगी जीव विशेषाधिक हैं, ९७. (उनकी अपेक्षा) संसारस्थ जीव विशेषाधिक हैं, ९८. (उनकी अपेक्षा) सर्वजीव विशेषाधिक हैं। -सत्ताईसवाँ (महादण्डक) द्वार ॥२७॥ विवेचन–सत्ताईसवाँ महादण्डकद्वार : सर्व जीवों के अल्पबहुत्व का विविध विवक्षाओं से निरूपण—प्रस्तुत सूत्र (३३४) में महादण्डकद्वार के निमित्त से विविध विवक्षाओं से समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का प्रतिपादन किया गया है। महादण्डक के वर्णन की अनुज्ञा - शिष्य को गुरु की अनुज्ञा लेकर की शास्त्र प्ररूपणा या व्याख्या करनी चाहिए। इस दृष्टि से भी श्री गौतमस्वामी महादण्डक का वर्णन करने की अनुमति लेकर कहते हैं कि -भगवन् ! मैं जीवों के अल्पबहुत्व के प्रतिपादक महादण्डक का वर्णन करता हूँ अथवा रचना करता हूँ। समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का क्रम - (१) गर्भज जीव सबसे कम इसलिए हैं कि उनकी संख्या संख्यात-कोटाकोटि परिमित हैं। (२) उनकी अपेक्षा मनुष्यस्त्रियाँ संख्यातगुणी अधिक हैं, क्योंकि मनुष्यपुरुषों की अपेक्षा सत्ताईसगुणी और सत्ताईस अधिक होती हैं। (३) उनसे बादर तेजस्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुणे हैं, क्योंकि वे कतिपय वर्ग कम आवलिकाधन-समय-प्रमाण हैं । (४) उनकी अपेक्षा अनुत्तरौपातिक देव असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि वे क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भागवर्ती आकशप्रदेशों १. प्रज्ञापनसूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १६३ २. 'सत्तावीसगुणा पुण मणुयाणं तदहिआ चेव' -प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक १६३ से उद्धृत
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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