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________________ प्रतिपादन किया गया है। प्रज्ञापना में छत्तीस पद हैं, उनमें से २३ वें, २७ वें, ३५ वें पद में क्रमशः प्रकृतिपद, कर्मपद, कर्मबंधवेदपद, कर्मवेदबंधपद, कर्मवेदवेदकपद और वेदनापद ये छह नाम हैं। षट्खण्डागम के टीकाकार वीरसेन ने षट्खण्डागम के जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बंधस्वामित्व, वेदना, वर्गणा और महाबंध ये छह नाम दिये हैं। प्रज्ञापना के उपर्युक्त पदों में जिन तथ्यों की चर्चाएं की गई हैं, उन्हीं तथ्यों की चर्चाएं षट्खण्डागम में भी की गई हैं। दोनों ही आगमों में गति आदि मार्गणास्थानों की दृष्टि से जीवों के अल्पबहुत्व पर चिन्तन किया गया है। प्रज्ञापना में अल्पबहुत्व की मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं, जिनमें जीव और अजीव इन दोनों पर विचार किया गया है। षट्खण्डागम में चौदह गुणस्थानों से सम्बन्धित गति आदि मार्गणाओं को दृष्टि में रखते हुए जीवों के अल्पबहुत्व पर विचार किया गया है। प्रज्ञापना में अल्पबहुत्व की मार्गणाओं के छब्बीस द्वार हैं तो षट्खण्डागम में चौदह हैं। किन्तु दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है कि षट्खण्डागम में वर्णित चौदह मार्गणा द्वार प्रज्ञापना में वर्णित छब्बीस द्वारों में चौदह के साथ पूर्ण रूप से मिलते हैं। जैसा कि निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है : प्रज्ञापना५२ षट्खण्डागम ३ १. दिशा २. गति ३. इन्द्रिय काय ५. योग ६. वेद م م ७. कषाय ८. लेश्या ९. सम्यक्त्व १०. ज्ञान ११. दर्शन १२. संयम १३. उपयोग १४. आहार १. गति २. इन्द्रिय ३. काय ४. योग ५. वेद ६. कषाय लेश्या १२. सम्यक्त्व ७. ज्ञान ९. दर्शन ८. संयम १४. आहारक ५२. दिसि गति इंदिय काए जोगे वेदे कसाय लेस्सा य। सम्मत्त णाण दंसण संजम उवओग आहारे॥ भासग परित्त पणत्त सुहुम सण्णी भवत्थिए चरिमे। जीवे य खेत्त बन्धे पोग्गल महदंडए चेव॥ -पन्नवणा. 3, बहुवत्तव्वपयं सूत्र २१२. गा. १८, १८१ ५३. षट्खण्डागम, पुस्तक ७, पृ. ५२० [३५ ]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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