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________________ प्रज्ञापना२ षट्खण्डागम५३ | | ।। १५. भाषक १६. परित १७. पर्याप्त १८. सूक्ष्म १९. संज्ञी २०. भव २१. अस्तिकाय २२. चरिम २३. जीव २४. क्षेत्र २५. बंध २६. पुद्गल जैसे प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता नामक तृतीय पद में गति, प्रभृति मार्गणास्थानों की दृष्टि से छब्बीस द्वारों के अल्पबहुत्व पर चिन्तन करने के पश्चात् प्रस्तुत प्रकरण के अन्त में 'अह भंते सव्वजीवप्पबहुं महादण्डयं वत्तइस्सामि" कहा है, वैसे ही षट्खण्डागम में भी चौदह गुणस्थानों में गति आदि चौदह मार्गणास्थानों द्वारा जीवों के अल्पबहुत्व पर चिन्तन करने के पश्चात् प्रस्तुत प्रकरण के अन्त में महादण्डक का उल्लेख किया है।५४ ___प्रज्ञापना में जीव को केन्द्र मानकर निरूपण किया गया है तो षट्खण्डागम में कर्म को केन्द्र मानकर विश्लेषण किया गया है, किन्तु खुद्दाबंध (क्षुद्रकबंध) नामक द्वितीय खण्ड में जीवबंधन का विचार चौदह मार्गणास्थानों के द्वारा किया गया है, जिसकी शैली प्रज्ञापना से अत्यधिक मिलती जुलती है। __ प्रज्ञापना ५५ की अनेक गाथाएँ षट्खण्डागम में ५६ कुछ शब्दों के हेरफेर के साथ मिलती हैं। यहाँ तक कि आवश्यकनियुक्ति और विशेषावश्यक की गाथाओं से भी मिलती हैं। ५४. षट्खण्डागम, पुस्तक ७, पृ. ७४५ ५५. समयं वक्कंताणं, समयं तेसिं सरीर निव्वत्ती। समयं आणुग्गहणं, समयं ऊसास-नीसासे॥ एक्कस्स उ जं गहणं, बहूण साहारणाणं तं चेव। जं बहुयाणं गहणं समासओ तं पि एगस्स ।। साहारणमाहारो, साहारणमाणुपाण गहणं च। साहारणजीवाणं, साहारणलक्खणं एयं॥-प्रज्ञापना, गा० ९७-१०१ ५६. तुलना करें साहारणमाहारो, साहारणमाणपाणगहणं च। साहारणजीवाणं, साहारणलक्खणं भणिदं। एयस्स अगुग्गहणं बहूणसाहारणाणमेयस्स। एयस्स जं बहूणं समासदो तं पि होदि एयस्स॥ आवश्यकनियुक्ति-गा० ३१ से और विशेषावश्यकभाष्य गा० ६०४ से तुलना करें - षट्खण्डागम-पुस्तक १३, गाथा सूत्र ४ से ९, १२, १३, १५, १६ [३६]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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