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________________ परम्परा की दृष्टि से निगोद की व्याख्या करने वाले कालक और श्याम ये दोनों एक ही आचार्य हैं, क्योंकि कालक और श्याम ये दोनों शब्द एकार्थक हैं। परम्परा की दृष्टि से वीरनिर्वाण ३३५ में वे युगप्रधान आचार्य हुए और ३७६ काल तक जीवित रहे । यदि प्रज्ञापना उन्हीं कालकाचार्य की रचना है तो वीरनिर्वाण ३३५ से ३७६ के मध्य की रचना है। आधुनिक अनुसंधान से यह सिद्ध है कि नियुक्ति के पश्चात् प्रज्ञापना की रचना हुई है । नन्दीसूत्र में जो आगम-सूची दी गई है, उसमें प्रज्ञापना का उल्लेख है । नन्दीसूत्र विक्रम संवत् ५२३ के पूर्व की रचना है । अतः इसके साथ प्रज्ञापना के उक्त समय का विरोध नहीं है । प्रज्ञापना और षट्खण्डागम : एक तुलना आगमप्रभाकर पुण्यविजयजी म. एवं पं. दलसुख मालवणिया ने 'पन्नवणासुत्तं ' ग्रन्थ की प्रस्तावना में प्रज्ञापनासूत्र और षट्खण्डागम की विस्तृत तुलना दी है। हम यहाँ उसी का संक्षेप में सारांश अपनी दृष्टि प्रस्तुत कर रहे हैं । प्रज्ञापना श्वेताम्बरपरम्परा का आगम है तो षट्खण्डागम दिगम्बरपरम्परा का आगम है। प्रज्ञापना के रचयिता दशपूर्वधर श्यामाचार्य हैं तो षट्खण्डागम के रचयिता आचार्य पुष्पदन्त और आचार्य भूतबलि हैं । दिगम्बर विद्वान् षट्खण्डागम की रचना का काल विक्रम की प्रथम शताब्दी मानते हैं । यह ग्रन्थ छह खण्डों में विभक्त होने से 'षट्खण्डागम' के रूप में विश्रुत है । ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध है कि पुष्पदन्त और भूतबलि से पूर्व श्यामाचार्य हुए थे । अतः प्रज्ञापना षट्खण्डागम से बहुत पहले की रचना है । दोनों ही आगमों का मूल स्रोत दृष्टिवाद है । ४९ दोनों ही आगमों का विषय जीव और कर्म का सैद्धान्तिक दृष्टि से विश्लेषण करना है। दोनों में अल्पबहुत्व का जो वर्णन है, उसमें अत्यधिक समानता है, जिसे महादण्डक कहा गया है । ५° दोनों में गति आगति प्रकरण में तीर्थंकर, बलदेव एवं वासुदेव के पदों की प्राप्ति के उल्लेख की समानता वस्तुतः प्रेक्षणीय है । ५१ दोनों में अवगाहना, अन्तर आदि अनेक विषयों का समान रूप से ४९. (क) अज्झयणमिणंचित्तं सुयरयणं दिट्ठीवायणीसंदं । जह वण्णियं भगवया, अहमवि तह वण्णइस्सामि ॥ प्रज्ञापनासूत्र, पृष्ठ १, गा. ३ (ख) अग्रायणीयपूर्वस्थित-पंचमवस्तुगतचतुर्थमहाकर्मप्राभृतकज्ञः सूरिर्धरसेननामाऽभूत् ॥ १०४ ॥ कर्मप्रकृतिप्राभृतमुपसंहार्येव षड्भिरिह खण्डैः ॥ १३४ ॥ - श्रुतावतार - इन्द्रनन्दीकृत (ग) भूतबलि - भयवदा जिणवालिदपासे दिट्ठविसदिसुत्तेण अप्पाउओति अवगयजिणवालिदेण महाकम्मपयडि- पाहुडस्स वोच्छेदो होहदि त्ति समुप्पण्णबुद्धिणा पुणो दव्वपमाणाणुगममादिं काऊण गंथरयणा कदा | - षट्खण्डागम, जीवट्ठाण, भाग १, पृष्ठ ७१ ५०. अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वण्णइस्सामि सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मणुस्सा.....सजोगी विसेसाहिया ९६, संसारत्था विसेसाहिया ९८, सव्वजीवा विसेसाहिया ९८ । -- प्रज्ञापनासूत्र - ३३४ तुलना करें 'एत्तो सव्वजीवेसु महादंडओ कादव्वो भवदि सव्वत्थोवा मणुस्सपत्ता गब्भवक्कंतिया ५१. प्रज्ञापनासूत्र, सू० १४४ से ६५ तुलना करें— षट्खण्डागम, पुस्तक ६. सू. ११६-२२० [ ३४] ... णिगोद - जीवा विसेसाहिया । षट्खण्डागम, पुस्तक ७
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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