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________________ २७२] [प्रज्ञापना सूत्र [२७३ प्र.] भगवन्! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धा-समय (काल), इनमें से द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? .. [२७३ उ.] गौतम! १. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, और आकाशास्तिकाय, ये तीन (द्रव्य) तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प हैं, २. (इनसे) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य हैं तथा असंख्यातगुणे हैं, ३. (इनसे) जीवास्तिकाय, द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुण हैं, ४. वह प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण है, ५. (इससे) पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा है, ६. वही (पुद्गलास्तिकाय) प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण है। ७. अद्धा-समय (काल) (उससे) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा है, ८. और (इससे भी) आकाशास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुण है। इक्कीसवाँ (अस्तिकाय) द्वार ॥२१॥ विवेचन—इक्कीसवाँ अस्तिकायद्वार:अस्तिकायद्वार के माध्यम से षड्द्रव्यों का अल्पबहुत्वप्रस्तुत चार सूत्रों (सू. २७० से २७३ तक) में द्रव्य, प्रदेशों व द्रव्य और प्रदेशों—दोनों की अपेक्षा से धर्मास्तिकाय आदि षड्द्रव्यों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। __द्रव्य की अपेक्षा से षड्द्रव्यों का अल्पबहुत्व—(१) धर्मास्तिकायादि तीन द्रव्य, द्रव्य रूप से एक-एक संख्या वाले होने से सबसे अल्प हैं। जीवास्तिकाय इन तीनों से द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं, क्योंकि जीव अनन्त हैं और वे प्रत्येक पृथक्-पृथक् द्रव्य हैं। उससे भी पुद्गलास्तिकाय द्रव्यापेक्षया अनन्तगुणा है, क्योंकि परमाणु, द्विप्रदेशीस्कन्ध आदि पृथक्-पृथक् द्रव्य स्वतन्त्र द्रव्य हैं, और वे सामान्यतया तीन प्रकार के हैं—प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत। इनमें से सिर्फ प्रयोगपरिणत पुद्गल, जीवों की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक जीव अनन्त-अनन्त ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय आदि कर्मपरमाणुओं (स्कन्धों) से आवेष्टित-परिवेष्टित (सम्बद्ध) है, जैसा कि व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) में कहा है? -'सबसे थोड़े प्रयोगपरिणत पुद्गल हैं, उनसे मिश्रपरिणत पुद्गल अनन्तगुणे हैं और उनसे भी विस्रसापरिणत अनन्तगुणे हैं। अतः यह सिद्ध हुआ कि पुद्गलास्तिकाय, द्रव्य की अपेक्षा से जीवास्तिकाय द्रव्य से अनन्तगुणा है। पुद्गलास्तिकाय की अपेक्षा अद्धा-काल द्रव्यरूप से अननतगुणा है; क्योंकि एक ही परमाणु के भविष्यत् काल में द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् दशप्रदेशी संख्यातप्रदेशी असंख्यातप्रदेशी, और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के साथ परिणत होने के कारण एक ही परमाणु के भावीसंयोग अनन्त हैं और पृथक्-पृथक् कालों में होने वाले वे अनन्त संयोग केवलज्ञान से ही जाने जा सकते हैं। जैसे एक परमाणु के अनन्त संयोग होते हैं, वैसे द्विप्रदेशीस्कन्ध आदि सर्वपरमाणुओं के प्रत्येक के अनन्त-अनन्त संयोग भिन्न-भिन्न कालों में होते हैं। ये सब परिणमन मनुष्यलोक (क्षेत्र) के अन्तर्गत होते हैं। इसलिए क्षेत्र की दृष्टि से एक-एक परमाणु के भावी संयोग अननत हैं। जैसे—यह परमाणु १. 'सव्वत्थोवा पुग्गला पयोगपरिणया, मीसपरिणया अणंतगुणा, वीससापरिणया अणंतगुणा।'—व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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