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________________ २६८] [प्रज्ञापना सूत्र सूक्ष्मद्वार के माध्यम से अल्पबहुत्व—सबसे अल्प नोसूक्ष्म-नोबादर अर्थात् सिद्धजीव हैं, क्योंकि वे सूक्ष्म जीवराशि और बादर जीवराशि के अनन्तभाग के बराबर हैं। उनसे बादरजीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि बादर निगोदजीव सिद्धों से अनन्तगुणे हैं। उनसे सूक्ष्म जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि बादरनिगोदों की अपेखा सूक्ष्मनिगोद असंख्यातगुणे अधिक हैं। उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार : संज्ञी आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व २६८. एतेसि णं भंते! जीवाणं सण्णीणं असण्णीणं नोसण्णीनोअसण्णीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सण्णी १, णोसण्णीणोअसण्णी अणंतगुणा २, असण्णी अणंतगुणा ३। दारं १९॥ [२६८ प्र.] भगवन् ! संज्ञी, असंज्ञी और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२६८ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प संज्ञी जीव हैं, २. (उनसे) नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव अनन्तगुणे हैं (और उनसे भी) ३. असंज्ञीजीव अनन्तगुणे हैं। __. उन्नीसवाँ (संज्ञी) द्वार ॥१९॥ विवेचन-उन्नीसवाँ संज्ञीद्वार : संज्ञी आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२६८) में संज्ञी, असंज्ञी और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। सबसे कम संज्ञी जीव हैं, क्योंकि विशिष्ट मन वाले जीव ही संज्ञी होते हैं और ऐसे जीव सबसे कम हैं। संज्ञियों की अपेक्षा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी (सिद्ध) जीव अनन्तगुणे हैं, उनकी अपेक्षा असंज्ञीजीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकाय आदि जीव अनन्त हैं, जो सिद्धों से भी अनन्तगुणे हैं। बीसवां भवसिद्धिकद्वार : भवसिद्धिकद्वार के माध्यम से अल्पबहुत्व २६९. एतेसि णं भंते! जीवाणं भवसिद्धियाणं अभवसिद्धियाणं णोभवसिद्धियणोअभवसिद्धियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? . गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अभवसिद्धिया १, णोभवसिद्धियणोअभवसिद्धिया अणंतगुणा २, भवसिद्धिया अणंतगुणा ३। दारं २०॥ [२६९ प्र.] भगवन् ! इन भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक और नोभवसिद्धि-नोअभवसिद्धिक जीवों में से कौन किन से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? [२६९ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े अभवसिद्धिक जीव हैं, २. (उनसे) नोभवसिद्धिक१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १३९ २. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १३९
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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